(toc) #title=(Table Of Content)
1. दिव्यता से आप क्या समझते है ?
दिव्य अर्थात सुंदर,पवित्र जिसमे साक्षात् ईश्वर का वास हो। जैसा कि मैंने कहा दिव्यता कहां पाई जाती है ? आप सब को पता है दिव्यता हर किसी के पास नहीं पाई जाती क्योकि दिव्यता को पाने के लिए सर्वप्रथम हमे स्वयं को पवित्र करना होगा।
मगर यदि आप दिव्यता को पाने के लिए उत्सुक है, तो आपको सबसे पहले स्वयं को शुद्ध करना होगा। शुद्धता केवल स्नान और साफ- सफाई नहीं बल्कि अपने अंतर्मन से स्वयं को हर दोष से मुक्त करना होगा,बुरे कर्म और बुरे विचारो का सदा के लिए त्याग करना होगा, अपने भीतर छिपे जानवर से लड़ कर उससे जितना होगा, क्योकि मनुष्य के भीतर ही छिपा होता है, कोई ना कोई दोष-विकार जो मनुष्य को जानवर बनने के लिए मजबूर करता है,जिससे मनुष्य ना चाह कर भी कई अपराध और कुकर्म कर बैठता है जिससे वो स्वयं को अपवित्र करने की भूल कर जाता है।
संसार में कई ऐसे मनुष्य मौजूद है जो आज भी बदलते युग में कभी स्वयं को बदलने का प्रयास नहीं किया बल्कि अपनी अच्छी सोच और कर्मो का चयन कर उन्होंने कई लोगो की सहायता की है,और आज भी कर रहे है। ऐसे निर्दोष चित्त मनुष्य कभी किसी का अहित नहीं करते और ना ही किसी का दिल दुखाने का प्रयास करते है, चाहे वो कितने भी दुःख,दर्द और तकलीफ में क्यों ना हो कभी अपने मन में कोई गलत विचार नहीं लाते। जब त्याग और समर्पण किसी मनुष्य में समाहित होने लगता है,तो वो मनुष्य ईश्वर के करीब होने लगता है,हर पल एक दिव्य ऊर्जा के घेरे में वो स्वयं को महसूस करने लगता है।
2. मनुष्य के अंदर पलने वाला जहर जो उसे अंदर से खोखला कर देता है।
ये क्रोध, नफरत, स्वार्थ,लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, मनुष्य के भीतर पलने वाला एक ऐसा जहर है,जो अंदर ही अंदर उसे खोखला बना देता है,मगर मनुष्य भी कहां समझने वाला वो तो इस जहर को अपने भीतर पाल कर रखता है, जिससे उसका ही अहित होता है, क्योकि ऐसे मनुष्य के पास कोई दिव्यता नहीं होती बल्कि ईश्वर का सानिध्य भी उससे दूर हो जाता है।
3. कहां होता दिव्यता का वास ?
आप मनुष्यो को यदि ऐसा लगता है, कि ईश्वर की दिव्यता केवल मंदिरो में,धार्मिक स्थलों में, तथा तीर्थो में ही पाई जाती है, और कहीं नहीं तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है। क्योकि जहां मानवता का वास होता है, वहीं दिव्यता का भी वास होता है, जिनके दिलो में नफरत और घृणा का कोई स्थान नहीं होता, जहां सम्मान और दया का भाव होता है,वहीं दिव्यता का वास होता है, जहां अहंकार और लोभ का कोई स्थान नहीं होता, वहीं दिव्यता का वास होता है।
4. कैसे करें दिव्यता को आकर्षित ?
अपनी मेहनत और कर्मो पर जो विश्वास करता है, जो सदैव सत्य का अनुसरण करता है, जो हमेशा न्याय का पालन करता है, जो धर्म को ही अपना सब कुछ मानता है, जो छल और कपट से स्वयं को दूर रखता है, वही दिव्यता को अपनी तरफ आकर्षित करता है।
5. जीवन के संघर्ष और समस्याओं से कौन विचलित नहीं होता ?
चाहे दुःख हो या सुख जो अपने धैर्य को बनाए रखता है, जो जीवन के किसी भी मोड़ पर समस्याओ को देख विचलित नहीं होता, जो ईश्वर को बेवजह अपने दुःख का कारण नहीं मानता जो ईश्वर को कभी नहीं कोसता, जो अमीर हो या गरीब किसी में भेदभाव जैसी भावना नहीं रखता, जो अपने बड़े बुजुर्ग का माता-पिता का सदैव सम्मान करता है, वो निरंतर दिव्यताओं से स्वयं को घिरा पाता है। क्योकि दुनिया में बिना तप,त्याग और समर्पण के कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता।
* यदि त्वं ईश्वरीयतां अनुभवितुम् इच्छसि तर्हि स्वविचारान् निर्दोषं कर्तुं शिक्षस्व, मनः शुद्धयितुं शुद्धिं च शिक्षतु, यतः तव चञ्चलं मनः भवतः बृहत्तमः शत्रुः अस्ति, यः शत्रुः बहिः अन्वेष्टुं प्रयतते सः भवतः अन्तः निगूढः अस्ति।।
अर्थात - यदि दिव्यता को महसूस करना चाहते हो तो, खुद के विचारो को दोषमुक्त करना सीखो, अपने मन को शुद्ध और पवित्र करना सीखो, क्योकि तुम्हारा चंचल मन ही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है, जिस शत्रु को तुम बाहर ढूंढने का प्रयास कर रहे हो, वो तुम्हारे ही अंदर छिपा है।