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तुम्हारे सुरक्षा की ढाल हूँ मैं, तुम्हारी उम्मीद की किरण हूँ मैं, मुझे इधर-उधर ढूंढने का प्रयास मत करो, बस अपने कर्म करो,क्योकि प्रत्येक प्राणियों के कर्मो का हिसाब हूँ मैं।
यदा यदा धर्मस्य क्षयः भवति, यदा यदा अधर्मस्य वृद्धिः भवति, यदा यदा पृथिवी पापभारेन भारं प्रारभते, यदा यदा दुष्टः अभिमानी च शिरः उत्थापयितुं प्रयतते तदा तदा जीवानां मोक्षः भवति .सद्जनरक्षणाय दुष्टानां च अन्त्याय कश्चन अवतारः अवश्यमेव आगच्छति, येन जगत् पापस्य अधर्मस्य च भारात् मुक्तं भवेत्, पुनः पृथिवी तारिता भवेत्।।
अर्थात- जब-जब धर्म की हानि होती है, जब-जब अधर्म की वृद्धि होती है, जब-जब पाप की बोझ से पृथ्वी दबने लगती है, जब-जब कोई दुराचारी अहंकारी अपना शीश उठाने का प्रयास करता है,तब-तब प्राणियों के उद्धार के लिए,सत्कर्मियों की रक्षा के लिए, तथा दुराचारियो के अंत के लिए, कोई ना कोई अवतार अवश्य आता है,ताकि पुनः संसार पाप और अधर्म की बोझ से मुक्त हो सके, पृथ्वी का पुनः उद्धार हो सके।
गीता के चतुर्थ अध्याय में कृष्ण ने जो श्लोक कहा था उनकी वाणी कभी असत्य नहीं हो सकती, ये जो श्लोक आज मैंने प्रस्तुत किया है, इसकी रचना मैंने स्वयं की है, क्योकि हर दिन हमारे संसार में कोई ना कोई जुर्म और अपराध घटित होता है, मगर हम उसे देख कर और सुन कर ही रह जाते है, कभी गलत का विरोध नहीं करते।
आज इस लेख को लिखने का ख्याल मेरे जेहन में इसलिए आया क्योकि कई वर्षो से निरंतर मैं जुर्म और अपराध को बढ़ते ही देख रही हूँ, कभी ये कम होने का नाम नहीं लेता। कुछ लोगो को मेरी बाते बकवास लग सकती है, कुछ लोगो को मेरी बाते पसंद भी आ सकती है, क्योकि मनुष्य हर चीज में सबसे पहले अपना फायदा ढूंढने का प्रयास करता है, इसलिए अच्छी बाते लोगो को जल्दी ना तो पसंद आती है और ना ही हजम होती है, अच्छी बातो और विचारो को वही समझ सकता है जिसने स्वार्थ के लिए किसी से कोई रिश्ता नहीं जोड़ा ना ही अहंकार में आ कर किसी का तिरस्कार करने का प्रयास किया है।
अब मैं अपने अहम मुद्दे पर आती हूँ, जैसा कि अपनी पहली पंक्ति में मैंने कहा उसे समझने का प्रयास करे आप अपने जीवन के गूढ़ रहस्य तक पहुंच जाएंगे। अभी यदि अपने फायदे के लिए आप किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे है, और आपको लगता है,गलत कर्म करने के बावजूद आप सुखी सम्पन्न है तो आज आपका सामना सत्य से होगा कि आप कितनी बड़ी गलतफहमी में जी रहे है।
1. क्या है जीवन का सत्य ?
आपका शरीर मृत्यु के बाद आपका साथ छोड़ देता है, जिस शरीर पर आपको इतना अहंकार है वो भी समय आने पर जब आपका साथ नहीं देता, तो कैसे आपका बुरा कर्म आपके लिए कल्याणकारक साबित हो सकता है ? अभी एक और सत्य सुनना बाकि है, मरने के बाद तुम्हारे शरीर से आत्मा बाहर आती है, और वो आत्मा पुनः ईश्वर से मिलने जाती है, ताकि तुम्हारे कर्मो का हिसाब वहां हो सके, तुम्हारे द्वारा हुए प्रत्येक कुकर्म का हिसाब तुम्हे मिल सके, इंसान का कानून सबूत मांगता है, उसे सबूत की जरूरत पड़ती है,मगर कुदरत का कानून कोई सबूत नहीं मांगता, उसे किसी सबूत की जरूरत नहीं क्योकि उसके पास प्रत्येक प्राणियों के कर्मो का लेखा जोखा होता है, यदि तुम वहां जा कर असत्य कहने की भूल करते हो, तो तुम्हे तुम्हारे द्वारा किये गए प्रत्येक कुकर्म दिखाया जाता है, जिसे देख तुम अपने ही नजरो में गिर जाते हो और ईश्वर के न्यायालय में जा कर अपने कुकर्मो की सजा पाते हो।
तब तुम यही विचार करते हो यदि जीवन में एक भी पुण्य कर्म कर लिया होता तो शायद सजा कम हो गई होती। क्योकि अच्छे पुण्य कर्म तुम्हारी ढ़ाल है,जो हर बला और मुसीबत से तुम्हारी रक्षा करते है, तुम्हे उम्मीद की एक किरण दिखाते है।
2. कौन सा सुख टिकाऊ नहीं होता ?
दुनिया में कुछ भी टिकाऊ नहीं, जैसे प्रत्येक दुःख के बाद सुख है, जैसे प्रत्येक रात्रि के बाद एक सवेरा है, जैसे बारिश के बाद धूप है, जैसे शीत के बाद गर्मी है, जैसे युवावस्था के बाद बुढ़ापा है, फिर तुम कैसे मान लिए कि तुम्हारे बुरे कर्म का क्षणिक सुख टिकाऊ है ?
इससे पहले कि बहुत विलंब हो जाए, तुम्हारा जीवन अंधकार से भर जाए, समय रहते अपनी भूल को स्वीकार लो, अपने बुरे कर्मो को सुधार लो।