जब तक तुम किसी से शत्रुता नहीं मोल लेते,तब तक कोई तुमसे शत्रुता मोल नहीं ले सकता, जब तक तुम किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं करते, तब तक कोई तुम्हे हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं कर सकता।
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* 1. महादेव ने संसार को कौन सा बहुमूल्य सीख प्रदान किया है ?
महादेव समस्त जगत के पिता हैं,आदि अनंत भी वही हैं। कैलाश जिनका निवास हैं,जो हर दोष से मुक्त हैं,जिनके लिए असुर हो या देवता,मनुष्य हो या पशु सभी एक समान हैं। जो किसी में भेदभाव नहीं करते, सर्वशक्तिशाली होने के बावजूद भी जो खुद पर अभिमान नहीं करते,जो विशालकाय विषधर सर्पो की माला अपने कंठ में धारण करते,जिनके कैलाश धाम में जा कर शत्रु भी मित्र बनते, उन महादेव के दिए इस सीख को तुम मनुष्य क्यों नहीं पालन करते ?
* 2. क्यों कहलाते हैं महादेव देवों के देव ?
कहने को तो सब कुछ हैं उनके पास, ऐसा क्या हैं जो नहीं महादेव के पास। फिर भी वो साधारण वेशभूषा धारण करते हैं, दिखावे से वो दूर रहते हैं,जो हैं जीवन का सत्य उसे ही वो कबूल करते हैं,अपनी महानता का वो गुणगान नहीं करते हैं, यूँही नहीं कहलाते वो देवो के देव, समस्त देव भी उनकी मनमोहक छवि को देखने को तरसते हैं, जो रहते छल और कपट से दूर, सिर्फ वो ही शिव को जान पाते हैं।
बहुत दुखी हूँ मैं संसार की दशा को देख,जहां अपने ही अपनों के शत्रु बन बैठे हैं,माता-पिता बड़े बुजुर्गो के सम्मान को आज सब भुला बैठे हैं। मित्र ही मित्र का अहित चाहता हैं,भाई ही अपने भाई से शत्रुता निभाता हैं,क्या होगा इसका परिणाम इसे कोई नहीं जानता हैं,इस संसार में अब परिणाम की चिंता कौन करता हैं ?
जिससे तुम मनुष्य घृणा करते हो,जिसे देख तुम अपनी सुरक्षा के लिए उसकी हत्या करते हो,उसी सर्प को महादेव अपने कंठ में स्थान देते हैं,पशु हो या पक्षी यदि उसे प्रेम और सम्मान प्राप्त हो तो वो भी बदले में तुम्हे प्रेम और सम्मान ही देंगे। सबसे बड़ा विष तो मनुष्य के मन में पल रहा जो सर्प से भी अधिक विषधर हैं, उस विष का क्या करोगे ? उस विष से तुम अपनी सुरक्षा कैसे करोगे ?
तुम जब तक दीवार पर अपना सर नहीं मारोगे ,तब तक तुम्हे दीवार चोट या दर्द नहीं दे सकता। यदि तुम स्वयं ही जा कर दीवार के सामने अपना सर मार रहे तो दीवार क्या करेगी ? इसमें गलती तुम्हारी हैं दीवार की नहीं,तुम स्वयं चल कर दीवार तक गए,दीवार खुद चल कर तुम तक नहीं आई और ना ही आ सकती हैं, जब तक तुम कोई प्रतिकिर्या नहीं देते,तब तक तुम्हे सामने वाला नुकसान नहीं पंहुचा सकता।
महादेव के कंठ में सुशोभित वो सर्पो का हार,महादेव को अति प्रिय हैं,और उतना ही उस सर्प को महादेव प्रिय हैं,क्योकि ना तो महादेव के मन में उस सर्प के लिए कोई घृणा हैं और ना ही उस सर्प के मन में महादेव के लिए कोई घृणा हैं।
अर्थात तुम मनुष्य एक दूसरे से घृणा,नफरत जैसी भावना रखोगे तो तुम्हे उसका सकारात्मक परिणाम कहां से प्राप्त होगा ?
महादेव ने किसी को स्वयं से नीचे स्थान प्रदान नहीं किया, सबके इष्ट होने के बावजूद भी महादेव ने सबको स्वयं से भी ऊँचा स्थान दिया हैं,चंद्र को अपने मस्तक के ऊपर स्थान दिया,गंगा को अपनी जटाओ में स्थान दिया,और सर्प को अपने कंठ में स्थान दिया। यदि तुम किसी को भी स्वयं से ऊँचा स्थान दोगे तो इससे तुम उसके समक्ष छोटे नहीं हो जाओगे मगर इस संसार में तो सभी मनुष्यो को सबसे बड़ा बनना हैं और सबको खुद से छोटा समझना हैं,जिस मनुष्य की सोच ऐसी होती हैं,जो सबको स्वयं से छोटा समझते हैं अक्सर वो लोग अपने सम्मान को खो देते हैं, जिससे बाद में वो चाह कर भी किसी की नजरो में ऊपर नहीं उठ पाते ऐसी सोच रखने वाले मनुष्य सबकी नजरो से गिर जाते हैं।
* 3. कौन सा विष संसार में सर्प से भी अधिक विषधर है ?
मनुष्य के मन में पलने वाला नफरत का विष उस सर्प से अधिक विषधर हैं जिसके कारण मनुष्य स्वयं का ही विनाश कर लेता हैं। नफरत और प्यार की लड़ाई के बीच जीत हमेशा प्यार की ही होती हैं क्योकि प्यार अमृत के समान होता हैं,जिसपे किसी विष का असर नहीं होता हैं,विष भी प्यार के अमृत को पा कर अमृततुल्य बन जाता हैं।