एक कर्तव्यनिष्ठ धर्मपरायण स्त्री का परिचय।

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 स्त्री अपने जीवन में एक बेटी से किसी की पत्नी और पत्नी से माँ तक का सफर तय करती हैं। ना जाने कितने कष्टों को सहन कर अपने ख्वाईशो को मिटा कर अपना फ़र्ज़ निभाती हैं।


जब किसी  घर बेटी का जन्म होता हैं तो कुछ लोग प्रसन्न होते तो कहीं पर कुछ लोग अफ़सोस करते की काश बेटा जन्म लेता तो उन्हें अधिक प्रसन्नता होती। क्योकि बेटियों के जन्म से अधिक जिम्मेदारिया बढ़ जाती हैं और बेटे के जन्म से जिम्मेदारिया कम उठानी पड़ती हैं क्योकि बेटियों के विवाह के लिए दहेज़ दिया जाता हैं और बेटे के विवाह के लिए दहेज़ लिया जाता हैं। 


सारा खेल बस कागज़ के टुकड़े का हैं ना ? अगर इन पैसो को पानी में बहा दिया जाए तो इनका कोई महत्व नहीं यदि इन पैसो को कोई अपनी मेहनत से  प्राप्त करता तो इसका कई गुना महत्व बढ़ जाता हैं। आज के दौर में भी लोग कहते हैं की एक बेटे की माँ कहलाना बहुत गौरव की बात होती हैं मगर बेटियों की माँ का कोई महत्व नहीं क्योकि उसने बेटी को जन्म दिया।  


अब सोचने वाली बात ये हैं की बेटे हो या बेटी माँ तो दोनों को नौ महीने तक अपनी कोख में रखती हैं ऐसा तो नहीं की बेटे पांच महीने में ही जन्म ले लेते हैं, और बेटे को जन्म देते वक़्त माँ को कोई पीड़ा नहीं होती, पीड़ा तो बेटे और बेटी दोनों के जन्म में माँ को एक समान होती हैं। 


1. एक कर्तव्यनिष्ठ धर्मपरायण स्त्री का परिचय।


एक स्त्री ही पुरे संसार को संचारित करती हैं वो नारीशक्ति ही प्रत्येक मनुष्यो के शरीर में ऊर्जा शक्ति का संचार करती हैं जिसे हमसब माँ आदिशक्ति पार्वती के नाम से जानते हैं देवी पार्वती भगवान महादेव की अर्धांगनी हैं और गणेश कार्तिकेय की जननी हैं। देवी पार्वती अपने गृहस्थ को भी उचित प्रकार संभालती हैं और अपने संसार को भी भलीप्रकार से संभालती हैं। देवी पार्वती ने स्त्री हो कर भी कभी अपनी स्त्री शक्ति को कम नहीं समझा एक योद्धा बन कर भयानक से भयानक कुरुर दुष्ट असुरो का संघार किया उनका वध किया।जब देवी पार्वती अपने पति महादेव के समक्ष होती तो वो अपनी गृहस्थ सौम्य रूप का ही परिचय देती हैं जब देवी पार्वती अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ होती तो अपनी ममता,करुणा और दया का ही परिचय देती हैं मगर जब देवी पार्वती के समक्ष कोई अधर्मी और अत्याचारी आता तो वो अपने सौम्य रूप में नहीं बल्कि अपने भयानक और विशाल महाकाली रूप का परिचय देती हैं। 

 

2. देवी पार्वती  गृहस्थ जीवन के द्वारा संसार की स्त्रियों को कौन सी सीख प्रदान करती है ?


क्योकि देवी पार्वती समस्त स्त्री शक्ति को यही सीख और सन्देश प्रदान करना चाहती हैं की तुम्हे अपनी सौम्यता केवल अपने गृहस्थ जीवन में ही दर्शाना चाहिए सदा अपने परिवार और पति का सम्मान करना चाहिए तथा अपने सन्तानो में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए बल्कि सभी को एक समान स्नेह और सम्मान देना चाहिए।हर स्त्री को यह बात स्मरण रखना चाहिए की उसे एक कर्तव्यनिष्ठ पुत्री और धर्मपरायण स्त्री के गुणों को अवश्य अर्जित करना चाहिए अपने पति के सिवा किसी पराए पुरुष को कभी अपने पति का स्थान नहीं देना चाहिए क्योकि यह एक अपराध ही नहीं एक पाप भी हैं जिस स्त्री में यह अवगुण और दोष होते हैं ऐसी स्त्रियों के अंदर कभी देवी पार्वती की कोई कृपा शक्ति नहीं प्राप्त होती। 


जैसे पुरे घर की गंदगी को बाहर कर घर की सफाई कर उसे  स्वच्छ बनाया जाता हैं, ठीक उसी प्रकार एक धर्मपरायण स्त्री पुरे घर को समेट कर अपने घर परिवार का संचालन करती हैं और अपना कर्तव्य निभाती हैं। जीवन में उतार-चढाव सुख-दुःख तो आते जाते रहते हैं मगर आपकी विवेकशीलता और अच्छाइयाँ कभी आपको विपरीत परिस्थिति में कमजोर नहीं बना सकती। 


सदैव याद रखे ईश्वर भी अनेको दुःख और पीड़ा को सहन करते हैं वो भी केवल अपने भक्तो के लिए तो क्या आप अपने परिवार के लिए अपने पति के लिए थोड़ा कष्ट सहन नहीं कर सकते ? हर युग में महादेव और देवी पार्वती को एक दूसरे से विछोह की पीड़ा सहन करनी पड़ती हैं मगर उन दोनों का रिश्ता कभी कमजोर नहीं होता। क्योकि देवी पार्वती और महादेव के प्रेम में इतनी सच्चाई और शक्ति हैं जो दोनों को बिछड़ जाने के बाद भी एक दूसरे से जोड़ कर रखते हैं। 


तो संसार की हर स्त्री को देवी पार्वती से यही सीख  ग्रहण कर अपने आदर्शो का सही से चुनाव कर अपने फ़र्ज़ को निभाना चाहिए। यदि हर स्त्री ने खुद के भीतर इतने बदलाव ले आई तो आजीवन वो कभी निराश नहीं होगी ना ही खुद को कभी कमजोर पाएगी क्योकि ऐसी स्त्रीयो में सदैव देवी पार्वती की शक्ति उनके नारीशक्ति को सुढृढ़ बनाएगी। 


संसार के हर पुरुषो का फ़र्ज़ बनता  हैं की वो अपनी पत्नी को सदैव प्यार और सम्मान दे जिनकी वो हक़दार हैं। क्योकि हर स्त्री घर की लक्ष्मी मानी जाती हैं, उसके सौभाग्य से ही आपका सौभाग्य हैं। 


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