प्रकृति की चेतावनी।

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सिर्फ शक्ति नहीं महाशक्ति हूँ मैं, काल की भी काल हूँ मैं, ये ना सोचना तुम्हारे कर्मो से अनजान हूँ मैं। 


दुष्टो का संहार हूँ मैं, सत्पुरुषों का उद्धार हूँ मैं, मेरे मौन को मेरी कमजोरी ना समझना, बस अपने दिए वचन के खातिर शांत हूँ मैं। 


अंधकार भी मैं, प्रकाश भी मैं,रात्रि मैं सवेरा भी मैं,सभी जीवों में समाहित ऊर्जा हूँ मैं। 


सौम्य भी मैं, विकराल भी मैं, सृजन भी मैं, विनाश भी मैं, सूखे नदी का जल भी मैं, अग्नि का स्रोत भी मैं। 


हर युग है मुझसे, समय का चक्र है मुझसे, धूप है मुझसे, छाँव है मुझसे, ऋतुओं का अस्तित्व है मुझसे।


जन्म भी मैं, मृत्यु भी मैं,सुख भी मैं, दुःख भी मैं,तुम्हारे प्रत्येक कर्मो का हिसाब हूँ मैं। 


सज्जनों की पुकार हूँ मैं, नारियों का मान हूँ मैं, सत्पुरुषों की रक्षक हूँ मैं, क्षमा भी मैं और सजा भी मैं। 


धरती मैं, आकाश भी मैं, प्रलय का आगाज भी मैं, उग्र मैं, शांति भी मैं, दया और ममता का आधार भी मैं। 


 जो भूल गए कलयुग में आ कर धर्म और न्याय को, रोक नहीं सकता कोई प्रकृति के महासंग्राम को। 



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