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ये दुनिया बहुत बड़ी है, यहां रहने वाला हर इंसान बस यही सोचता है कि उसके जीवन में कभी कोई दुख या तकलीफ ना आए उसका जीवन सदैव तनाव मुक्त रहे। मगर ऐसा संभव नहीं क्योकि दुख या तकलीफ से कोई भी मनुष्य तो क्या कोई देवता भी अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते। ऐसा क्यों कहा मैंने, क्या आप सब जानना नहीं चाहोगे ? मैंने ऐसा क्यों कहा ये आपको मेरे लेख को पढ़ कर समझ आ जाएगा फिर आपकी सभी जिज्ञासा शांत हो जाएगी।
1. क्या आपको दुख और सुख की सही और उचित वास्तविकता का बोध है ?
आप सभी मनुष्य यही सोचते है कि भला कौन चाहेगा की दुख उसके जीवन में दस्तक दे, इस दुनिया में हर कोई सुखी और खुशहाल जीवन चाहता है। मगर आप सब जिस सुख में आनंदित हो रहे और जिस दुख से आप उद्विग्न हो रहे है क्या आपको दुख और सुख की सही और उचित वास्तविकता का बोध है ? हकीकत तो ये है कि यदि किसी के जीवन में दुख नहीं आता तो उसे अपनों में छिपे गैर और गैरों में छिपे अपनों का वास्तविक बोध ना होता। दुख जीवन में आता ही इसलिए है ताकि वो चेहरे पर लगे नकाब को हटा कर सबकी असलियत का परिचय आपसे करा सके।
दुख आपका शत्रु नहीं बल्कि आपका हितैषी आपका मित्र है। दुख आपके जीवन में आता है ताकि आपको अंदर से मजबूत बना सके आपके भीतर छिपी कमजोरियों को आपसे दूर कर सके। आपके जीवन में दुख आने का एक और मुख्य कारण ये है कि जब तक आप उस दुख से नहीं गुजरते तब तक आपको किसी दूसरे के दुख का एहसास हो ही नहीं सकता, जब आप उस दुख से गुजरेंगे जिस दुख से कोई अन्य गुजर रहा तभी आप किसी दूसरे के दुख या दर्द को समझ पाएंगे।
2. आप कैसे कह सकते है कि दुख आपका सबसे बड़ा शत्रु होता है ?
सुख के दिनों में आपको सबका साथ प्राप्त होता है, क्योकि उस वक्त आपके पास धन,वैभव,पैसा बेशुमार होता है, उस वक्त आपका शत्रु भी आपका हितैषी और मित्र बन जाता है, किस के दिल में क्या है आपको इस बात का पता नहीं चल पाता है। फिर आप कैसे कह सकते है कि दुख आपका सबसे बड़ा शत्रु होता है ? जो हकीकत और वास्तविकता है, इस जीवन की वो एकमात्र दुख के क्षण में ही मनुष्य को ज्ञात होता है, सुख में तो मनुष्य आँखों में पट्टी बाँध कर घूम रहा होता है, अर्थात सब पर विश्वास कर लेता है, सबको अपना हितैषी समझने की भूल कर बैठता है, बाद में जब उसका सामना असलियत से होता है तो उसके आँखों से पट्टी अपने आप हटने लगती है, कौन है अपना और कौन बेगाना उसे इस बात की अनुभूति होने लगती है।
समय कभी भी करवट ले सकता है, समय को कोई रोक नहीं सकता, जरूरी नहीं आज किसी की जिंदगी में दुख है तो उसके जीवन में कभी सुख नहीं आएगा, ना तो दुख टिकाऊ है, ना ही सुख टिकाऊ है, दुख और सुख तो जीवन में आना जाना है, कभी- कभी दुख व्यक्ति के किसी बुरे कर्म का भी फल होता है, कभी दुख व्यक्ति के भूल के कारण भी उसके जीवन में आता है, ताकि मनुष्य अपने सही और उचित कर्म से रूबरू हो सके।
3. जीवन में दुःख क्यों दस्तक देता है ?
दुख तो तुम्हें ये सिखाने आता है कि तुमने जीवन को सही से जीना नहीं सीखा है, क्या उचित है और क्या अनुचित तुमने इस हुनर को नहीं सीखा है ? कौन तुम्हारा अपना है और कौन बेगाना, कौन तुम्हारा हितैषी है और कौन तुम्हारा दुश्मन उन्हें पहचानना तुमने नहीं सीखा है ? तुम्हारे किस भेद को तुम्हें कब और किसके समक्ष उजागर करना है और किसके समक्ष नहीं करना है, इसकी समझ अभी तुम्हारे अंदर नहीं आई है ?
यदि दुख का आगमन ना होता तो आज कोई सुख से अवगत ना होता क्योकि दुख के बाद ही सुख के असली महत्व और आनंद की अनुभूति हो सकती है, जैसे घनी अंधेरी रात के बाद सुबह का सवेरा कितनी चमक और उजाले के साथ पूरी दुनिया को रौशनी से भर देता है, यदि अंधेरी रात ना होती, तो सुबह के उजाले का महत्व कौन देता ?
अभी वास्तविक सुख की पहचान से ये दुनिया रूबरू नहीं हुई है, वास्तविक और स्थाई सुख क्या है इसका उल्लेख मैं अपने दूसरे लेख में करूंगी।आशा करती हूँ आप सबको मेरा लेख पसंद आएगा। तब तक के लिए आप सब अपना ख्याल रखे और खुश रहे। आप सबके प्यार और साथ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।