दिव्य दृष्टि का वास्तविक अर्थ।

World Of Winner
0




(toc) #title=(Table Of Content)



 अच्छाई और सच्चाई कभी किसी सबूत और सफाई की मोहताज नहीं होती,क्योकि अच्छाई और सच्चाई में साक्षात ईश्वर का वास होता है और ईश्वर को कोई झुठला नहीं सकता ना ही कोई ईश्वर को हरा सकता है।गलत चीजों के पीछे ये दुनिया भागती है, अच्छी बाते,अच्छे लोग, अच्छे काम,अच्छी आदते और अच्छी किताबे सबको पसंद नहीं आ सकती। 


अब आप खुद अंदाजा लगा लो कि जब बाजार में कोई चीज सस्ती मिलती है,तो वहां लोगो की भीड़ लग जाती है, उसे खरीदने के लिए हर कोई आगे खड़ा रहता है, क्योकि पैसे की बचत हो रही है, मगर कोई ये विचार क्यों नहीं करता कि हो सकता है वो सामान खराब हो जिससे स्वास्थ पर असर पड़ सकता है, आप बीमार हो सकते है, आपके खर्चे और बढ़ सकते है।आज इस दुनिया में ठीक वैसा ही इंसान एक दूसरे इंसान के साथ कर रहा है, ना तो इंसान की कद्र है,ना इंसानियत की परख है,आज इस संसार में मानव अपने बुरे कर्मो में मगन है। 


कुछ लोग कहते है कि भगवान को कोई देख नहीं सकता क्योकि उसके लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता है, मनुष्य अपने नेत्रों द्वारा किसी दिव्य ऊर्जा को नहीं देख सकता। मगर दिव्य दृष्टि असल में क्या होती है इसका ज्ञान क्या आप मनुष्यो को है ?


 1. दिव्य दृष्टि का वास्तविक अर्थ


दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जिसने कभी गलत कर्मो को नहीं चुना,दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जिसने अपनी नेत्रों से कभी अन्याय होते देख चुप नहीं रहा,दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जिसने सत्य को असत्य से पराजित करने का पाप नहीं किया, दिव्य दृष्टि वही पा सकता है, जिसने कभी लोभ, ईर्ष्या, स्वार्थ, अहंकार,क्रोध और घृणा जैसे स्वाभाव को नहीं अपनाया,दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जो अच्छाई के लिए अंतिम सांस तक लड़ने के लिए तैयार रहता है,दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जो कभी अपने माता-पिता और कुटुंब का निरादर नहीं करता,दिव्य दृष्टि वही पा सकता है जो सदैव धर्म का साथ देता है, कहने का तात्पर्य है यदि तुम्हारे भीतर कोई छल-कपट नहीं, यदि तुम निश्कपट और साफ मन से सदैव अच्छे कर्म में रूचि रखते हो,तो तुम दिव्य दृष्टि को धारण कर सकते हो यदि तुमने आजीवन पाप किया है,लोभ में आ कर सबको सताया है तो किसी भी जन्म में तुम्हे दिव्य दृष्टि प्राप्त नहीं हो सकती। 


यदि एक साधारण मनुष्य भी सदैव अच्छे कर्म,अच्छी आदते, अच्छी सोच को धारण करता है तथा सदैव धर्म का साथ देता है,और अधर्म के लिए आवाज उठाता है तो वो एक साधारण मनुष्य नहीं रह जाता, उसे इस बात का अनुमान नहीं हो पाता उसने क्या हासिल कर लिया है,ऐसे सत्य पुरुष ही दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने योग्य बन जाते है, और एक दिन समय आने पर वो अपनी खुली नेत्रों से ईश्वर को देख पाने में सक्षम होते है। 


इस दुनिया में ही सब कुछ है,गम है तो खुशी भी है, बुराई है तो अच्छाई भी है, यदि अंत है तो आरंभ भी है, यदि मृत्यु है तो पुनर्जन्म भी है, यदि विछोह है तो पुनः मिलन भी है, यदि अधर्म का अंधकार है तो धर्म का प्रकाश भी है, यदि इस धरा पर मनुष्य है तो इसी धरा पर कहीं ना कहीं भगवान भी है और वो कहां किस रूप में है उन्हें जानना, समझना और पहचान पाना सबके लिए संभव नहीं उन्हें वही पहचान सकेगा जिसका कर्म सही होगा जो धर्म का पालक होगा। 


2. दिव्य दृष्टि कैसे जागृत होती है ?


लोग कहते है कि दिव्य दृष्टि को साधना और तपस्या से जागृत किया जा सकता है,मगर लोग ये क्यों नहीं समझ पाते कि साधना और तपस्या तभी सफल हो सकती है, जब साधक की सोच, उसके कर्म सही हो तभी वो अपनी साधना और तपस्या में सफल हो पाता है।


 सदैव याद रखना भले ही तुम किसी गुरू, साधु महात्मा या किसी पंडित के पास क्यों ना चले जाओ मगर यदि तुम्हे अपनी साधना को सफल करना है तो तुम्हे किसी गुरू,साधु संत और पंडित के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी यदि तुम्हारे कर्म सही है,यदि तुमने सदैव अच्छाई और सच्चाई का चयन किया है, यदि तुमने सदैव धर्म का पालन किया है तो ये तीनो गुण ही तुम्हारी तपस्या और साधना है जिसकी सहायता से तुम ईश्वर को महसूस कर सकते हो,जिसकी सहायता से तुम अपनी दिव्य दृष्टि को जागृत कर पाने में सफल हो सकते हो। 




Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)