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1. भक्ति का सही अर्थ।
लोग आजकल भक्ति के सही अर्थ को बिना जाने ही स्वयं को ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त बताते हैं जैसे उनसे बड़ा ज्ञानी और महान कोई अन्य हो ही नहीं सकता।भक्ति में इतनी शक्ति होती हैं जो ईश्वर को भी अपने भक्त से मिलने पर विवश कर देती हैं।भक्ति से ही शक्ति को पाया जाता हैं संसार में आज सभी चराचर जीवों में उसी दिव्य शक्ति का वास हैं बिना उस शक्ति के किसी का कोई अस्तित्व नहीं। भक्ति जब तक अपने चरम सीमा तक नहीं पहुँचती तब तक वो भक्ति नहीं कहलाती।
2. कैसा होता है भक्त और भगवान का रिश्ता ?
भक्त और भगवान का रिश्ता बहुत अटूट होता हैं एक सच्चा भक्त वही कहलाता हैं जिसके भीतर किसी स्वार्थ और बुरे विकार का वास नहीं होता हैं। आज इस धरा पर ज्यादा संख्या में जो खुद को ईश्वर का सच्चा भक्त बताते हैं उनसे जरा पूछो उन्होंने अपनी भक्ति के लिए कौन सा त्याग और बलिदान दिया हैं ?त्याग और बलिदान का अर्थ ये नहीं की आप ईश्वर को अपनी जिंदगी ही समर्पित कर दो स्वयं को हानि पहुँचाओ बल्कि त्याग और बलिदान उन बुरे विकारों का करो जो तुम्हारे भक्ति में अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।
मेरे कहने का तात्पर्य ये हैं की इस संसार में जो भी मनुष्य हैं सब उसी परमात्मा की ही संतान हैं और एक संतान कभी अपने माता-पिता से विमुख नहीं हो सकती ना ही माता-पिता अपनी संतान से विमुख हो सकते हैं मगर यदि संतान अपने भीतर बुराई को पालना शुरू कर दे दुसरो का अहित कर यदि अपने माता-पिता के समक्ष जा कर उनका सम्मान करे तो माता-पिता अपनी संतान की इस कुरुरता से भला कैसे खुश हो सकते हैं ? आज इस कलयुग में वही तो घटित हो रहा हैं लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं तो कभी किसी की हत्या कर रहे हैं और स्वयं को महादेव का सच्चा भक्त समझते हैं ऐसे कुरुर और अश्लील भक्त नहीं बल्कि एक मुजरिम या गुनहगार कहलाते हैं।
3. क्यों नहीं फलित हो रही कलयुग में भक्ति ?
भक्ति की शक्ति इस कलयुग में खो चुकी हैं जिसका मुख्य कारण हैं इस धरा पर हो रहा पाप और अधर्म।जो हाथ किसी के कत्ल के लिए उठे वो हाथ कभी ईश्वर की भक्ति के लिए नहीं उठ सकते क्योकि ईश्वर के बनाएं नियमों को तोड़ने वाले कभी ईश्वर के भक्त नहीं कहलाते। बुरे विकारों से ग्रसित आज इस धरा पर चारों ओर मनुष्यों ने इस धरा को अपवित्र कर दिया हैं जरा स्वयं विचार करे आखिर क्या वजह हैं जो इस कलयुग में आपकी पूजा का फल आपको शीघ्र प्राप्त नहीं हो रहा ?
क्या वजह हैं जो ईश्वर ने मौन धारण कर रखा हैं ? आज मंदिरों में जिसे देखो ईश्वर की भक्ति में लीन रहता हैं मगर भक्ति का सही अर्थ क्या हैं वो उससे ही अनजान रहता हैं। ये मनुष्यों द्वारा किए गए पाप ही हैं जो इस धरती को अपवित्र और दूषित कर रखा हैं यही वजह हैं जो ईश्वर की शक्तियाँ इस कलयुग में पाप के बोझ तले दब चुकी हैं और इस पाप को मिटाने के लिए ईश्वर को स्वयं ही मनुष्य बन कर मनुष्यों के किए गए हर अपराध और पाप का फल दंड स्वरुप देने आना होगा मानवता क्या होती हैं इसका पाठ पढ़ाना होगा क्योकि सब इस धरा पर मानव तो बन गए मगर बुरे विकारों से ग्रसित हो कर स्वयं को दानव में तब्दील कर चुके हैं।
आप स्वयं विचार करे गंदे मैले हाथों से जब आप कोई वस्तु स्पर्श करते हैं तो वो वस्तु भी वैसे ही मैली और दूषित हो जाती हैं तो मनुष्य जब बुरे विकारों से ग्रसित हो कर बुरे विचारों को अपने मन में पाल कर बुरे कर्मो द्वारा स्वयं को दूषित कर यदि ईश्वर की भक्ति करेगा या ईश्वर की मूर्ति स्पर्श करेगा तो वो भक्ति कैसे फलित हो सकती हैं और कैसे किसी को सार्थक परिणाम दे सकती हैं ? यही वजह हैं की कलयुग में दैविक शक्तियाँ छिन्न हो चुकी हैं।