एक ऐसी सच्चाई जिसे आप नहीं जानते।

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जितने लोग उतनी बातें, सबकी प्रतिक्रिया अलग, सबकी सोच अलग। किताबों और ग्रंथों से पढ़ कर आपने जो ज्ञान प्राप्त किया उसी ज्ञान को आप जन-जन में बांट रहे हो मगर क्या हो अगर उस किताब में लिखी कुछ बातें अगर असत्य साबित हो जाए, क्या होगा जब आपको मालूम चले कि ग्रंथों में वर्णन की गई कुछ बातें सत्य के विपरीत है क्योकि असल सत्य आपको बताया ही नहीं गया। फिर आप क्या विचार करेंगे जब आपने ग्रंथों में कुछ ऐसा पढ़ा देवी देवता के बारे में और आप ईश्वर पर दोष निकालने लगे मगर असलियत कुछ हो जो आप जान ना सके फिर आपको अवश्य ग्लानि महसूस होगी अपने व्यवहार पर और अपने गलत विचार पर। 


आप में से कुछ लोग ये भी नहीं जानते वो रह कहां रहे है ? मेरा सवाल थोड़ा अजीब है आप यही विचार करेंगे हम तो पृथ्वी लोक पर रह रहे है, ये तो एक बच्चा भी बता देगा। यही समस्या है कुछ मनुष्यों की जिन्हें दूसरो के ज्ञान को स्वयं में संजोना अच्छा लगता है वो सोचते है हमने तो बहुत कुछ सीख और जान लिया अब हमें क्या जानना है ?


यदि आपकी यही सोच अडिग रही तो आप बहुत पीछे रह जाएंगे, यदि आप दूसरों के दिखाए मार्ग पर चलने की आदत डाल लेंगे तो आप कभी अपने सही मकसद और मंजिल तक नहीं पहुँच पाएंगे क्योकि सबकी मंजिल एक नहीं होती ना ही रास्ते एक होते है। हर इंसान की किस्मत एक सी नहीं होती इसलिए स्वयं की तुलना कभी किसी और से करने की भूल ना करना। 


मैं जानती हूँ आज कुछ लोग है जो मेरी बातों को नजरअंदाज कर जाते है, कुछ लोग मेरे लेख को पढ़ कर उसे एक साधारण ज्ञान समझ कर भुला देते है मगर भविष्य में जब ऐसे लोगों का सामना वास्तविक सत्य से होगा तब उन्हें सब कुछ समझ आने लगेगा। 


आकाश की दूरी कितनी है इसका पता किसी को नहीं, जब आप किसी ऊंचे स्थान या इमारत पर खड़े होते हो तो आकाश आपको उससे भी कहीं ऊपर दृश्यमान होता है। ये बात तो आप सब जानते हो धरती के सबसे नीचले हिस्से में पाताललोक बसा है आप पृथ्वी के बीच के हिस्से में रह रहे है, जहां से आप खुले आकाश को देखते है आकाश से ऊपरी हिस्सा है जो देवलोक या देव स्थान कहलाता है जहां देवी देवता का निवास माना जाता है। क्या आपने ये जानने का प्रयास किया आपको यहां क्यों रखा गया ? 


1. देवलोक और पाताललोक के बीच आपको क्यों बसाया गया ? 


ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस परमपिता को ये देखना था कि उनके द्वारा निर्मित किए गए सभी मनुष्य खुद में कौन से गुणों को संजोते है ''दैवीय गुण या आसुरी'' उस महाशक्ति को यही देखना था कि मानव किस कर्म का चयन करते है। 


जैसे लोहे के समीप रह कर चुंबक उसे अपनी तरफ खींचने का प्रयास करता है वैसे आसुरी स्वाभाव, आसुरी आदत उन्हें अपनी ओर खींचने का प्रयास करती है जिनमे बुरे विकार पहले से मौजूद होते है, जो अन्याय अनीति को अपनाते है। मगर जो अच्छे कर्मो का सदैव पालन करते है, जो हर बुरे विकार को स्वयं से दूर रखते है वो दैवीय शक्तियों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगते है। 


2. कलियुग में कौन रहेंगे सुरक्षित ?


आपको पता है जब कलयुग का अंत होगा तो आप में से कुछ लोग सुरक्षित होंगे, मगर जिन मनुष्यों में आसुरी भाव है उनका भयावह अंत होगा और वो काल के गर्भ में समा जाएंगे। इसलिए भयभीत होना है तो अपने बुरे कर्म से होना, बुरे इंसान से भयभीत होने की आवश्यकता ही नहीं, क्योकि एकमात्र तुम्हारा कर्म ही तुम्हें मरने के बाद भी तुम्हारी ढाल बन कर तुम्हारी रक्षा करता है, तुम्हें परमात्मा के निकट रखता है। 


ये आकाश और पृथ्वी की दूरी एक ऐसी माया है जिसे आप तब समझेंगे जब आपका सामना उस महाशक्ति से होगा जिसने इस माया को रचा है मगर इसके लिए आपको अभी से स्वयं में बेहतर बदलाव लाना होगा क्योकि रात्रि कह कर नहीं आती, सवेरा बता कर नहीं होता, ये सब परिवर्तन उस योगमाया का है जिसे आपने अभी अच्छी तरह से जाना ही नहीं बस किताबों और ग्रंथों में पढ़ कर आपने उस ज्ञान को ही अपना लिया। 



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