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यदि तुमसे कोई आ कर कहे कि तुम्हे करोड़ो की दौलत दी जाएगी मगर तुम्हे उस दौलत का आजीवन सुख प्राप्त नहीं हो पाएगा, वो सुख बस क्षणिक सुख होगा तो तुम्हे सुन कर अवश्य दुख होगा कि तुम्हे बेशुमार दौलत मिली भी तो किसी काम की नहीं इससे अच्छा होता वो दौलत तुम्हे मिलती ही नहीं क्योकि वो दौलत किस काम की जो क्षणिक सुख प्रदान करे जो अस्थाई हो ?
आज इस कलयुग में ठीक वैसा ही घटित हो रहा, मगर तुम मनुष्यो की चेतना और विवेक तुम्हारा साथ नहीं दे रहा जिस कारण तुम भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, उसे समझ पाने में असमर्थ हो।कुछ लोग कहते है योग से भगाए रोग, मगर उन्हें ये नहीं पता जो रोग आज इस कलयुग में सभी मनुष्यो को हानि पंहुचा रहा,उस रोग को स्वयं मनुष्यो ने ही पाला है। जिसे ना कोई योग भगा सकता और ना ही कोई औषधि इस रोग का निवारण कर सकती है।जब इस रोग को जन्म तुमने दिया है तो इस रोग का निवारण भी तुम्हे खुद करना होगा और यदि तुमने विलंब किया तो ये रोग एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है जिसका सीधा असर तुम्हारी जिंदगी पर पड़ेगा।
1. अधिक लालशा कभी बेहतर परिणाम नहीं दे सकता।
आप मनुष्यो को यदि मेरी बाते समझ नहीं आई तो मैं सरल भाषा में समझाती हूँ, '' अधिक की लालशा में आप अपने विवेक और चेतना का सही प्रयोग करना भूल चुके है, कहने का तात्पर्य है आप में से कुछ मनुष्य यही विचार करते है जो है सब मेरा है,मुझे जो भी प्राप्त हुआ है उसमे किसी की मेहरबानी नहीं, मेरे पास इतना धन है कि जो कभी खत्म नहीं हो सकता,इस पर बस मेरा अधिकार है,हर खुशी पर मेरा अधिकार है,मैंने जो कमाया है वो अपनी मेहनत से कमाया है उसमे किसी का कोई हक नहीं।
यदि रास्ते में कोई गरीब, असहाय मदद के लिए गुहार लगाता है तो आप में से कुछ लोग नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते है, आपके मन में उनके प्रति कोई दया या सहानुभूति नहीं होती, क्यों है ऐसा ? क्या किसी की मदद करने से, किसी भूखे को भोजन कराने से आपका धन कम हो जाएगा ?
चलो ये तो रहा किसी अजनबी किसी असहाय व्यक्ति की बात तो आपके मन में कोई दया नहीं क्योकि आप एक साधारण मनुष्य हो कोई देवता नहीं। मगर जब बात आपके परिवार की आती है, वहां पर भी आप में से कुछ मनुष्य अपने ही घर के सदस्यों की मदद से पीछे हट जाते है, भाई ही भाई की मदद से इंकार कर देता है, पुत्र ही अपने पिता की सहायता से पीछे हट जाता है।
इसमें भूल तुम मनुष्यो की नहीं बल्कि भूल तुम्हारे विवेक और चेतना की है,क्योकि तुम्हे सही और गलत का बोध ही नहीं तो तुम कैसे अपने जीवन को सही दिशा में ले कर जा सकते हो ?
तुम्हे पता है तुम असल सुख और वैभव से दूर हो, ये जो सांसारिक धन दौलत और पैसा तुम्हे मोहित कर रहा है वो एकमात्र छलावा है, हकीकत कुछ और है।
* स्नेह-करुणा-दया-पूर्णः स एव सर्व-सुख-सुविधाभिः सुखी भवति ।
अर्थात, वात्सल्य,करुणा भाव,दया होता है जिसके भीतर समाहित,वही होता है सभी सुख सुविधाओं से प्रफुल्लित।
यदि तुम्हे ऐसा प्रतीत हो रहा कि तुम सब कुछ प्राप्त कर चुके हो तो ये तुम्हारी भूल है, यदि तुमने सब कुछ पाया है तो क्या तुम्हारे मन में शांति का भाव है ? क्या तुम्हारे मन में संतोष का भाव है ?
2. चेतना जागृति का लाभ।
क्योकि संतोष का भाव उसी के मन में होता है जिसकी चेतना जागृत होती है, मन शांति का अनुभव उसी का करता है जिसकी चेतना प्रबल होती है। चेतना यदि किसी के भीतर जागृत हो जाए तो वो व्यक्ति ना तो दुख से विचलित हो सकता है और ना ही सुख और वैभव से अभिमानी हो सकता है। चेतना जिसकी जागृत होती है उसे कभी किसी वस्तु से मोह या लोभ नहीं होता। ना उस व्यक्ति को किसी से द्वेष या ईर्ष्या भाव रहता है और ना ही वो मोहमाया के दलदल में उलझता है। बस अपने कर्मो का सही चुनाव कर ईश्वर के बनाए नियमो का सदैव पालन करता है, वो कभी किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं करता।
यदि तुम किसी को पीड़ा पंहुचा कर झूठ का दामन थाम कर धन दौलत नाम शोहरत कमा कर खुद को सबसे खुशनसीब समझ रहे हो तो ये तुम्हारी सबसे बड़ी भूल है, क्योकि ये जो तुम्हे सुख की प्राप्ति हुई है वो क्षणिक सुख है,और जो मनुष्य सत्य का दामन थाम कर सदैव दूसरो के कल्याण की भावना रखते है भले ही आज उनके जीवन में दुख है मगर ये दुख क्षणिक दुख है,स्थाई नहीं क्योकि मनुष्य की चेतना ही उसे सही मार्ग से अवगत कराती है।
3. ऐसे लोग कभी सही मार्ग से नहीं भटक सकते।
जिसकी चेतना जागृत रहती है वो अपने कर्म में कोई चूक नहीं कर सकता, हम जिस दिशा में अपना कदम रखेंगे हमारा कदम हमे उसी दिशा तक ले जाएगा क्योकि उस दिशा का चयन हमने स्वयं किया है, इसलिए यदि आप चाहते है कोई आपका मार्गदर्शक बने तो उसके लिए सर्वप्रथम आपको अपने सही विवेक का पालन करना सीखना होगा,अपनी सो रही चेतना को पुनः जागृत करना होगा ताकि आप अपने मार्ग से भटक ना सके।