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1. सुखी रहने का रहस्य।
यदि आप इस संसार में सबसे सुखी और प्रसन्न रहना चाहते है तो सबसे पहले आपको दूसरो की खुशियों को देख कर उनसे ईर्ष्याभाव रखना छोड़ना होगा अन्यथा आप चाहे कितना भी प्रयास कर ले आप कभी सुखी और प्रसन्न नहीं रह सकते।
इस संसार में जो अंधकार छाया है उसे हर कोई देख नहीं पा रहा, क्योकि ज्यादातर लोग इस अंधकार में भी रहना पसंद कर रहे है, यही वजह है कि आज अपना परिवार भी आपको अपना शत्रु नजर आ रहा है। आप बाल्यावस्था से युवावस्था में तो आ गए मगर आपकी सोच छोटी रह गई, केवल बड़े होने से कोई सम्मान पाने का बड़ा कहलाने का हकदार नहीं हो जाता, जब तक उसमें सबके लिए एक समान आदर भाव और प्यार नहीं समाता तब तक वो किसी की भी नजरों में ऊपर नहीं उठ सकता।
क्या ये वही बनाई दुनिया है, जहां बहन अपनी बहन की खुशियों के लिए अपनी खुशियां भी न्यौछावर कर जाती थी, जहां भाई अपने भाई की कामयाबी को अपनी कामयाबी समझ कर गर्व महसूस करता था, क्या ये वही संसार है जहां पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे, जो जन्म-जन्म का साथ निभाया करते थे ? या ये संसार जो अभी दृश्यमान हो रहा वो हकीकत में एक भ्रम है ? ये वो संसार हो ही नहीं सकता जिसका निर्माण उस परमेश्वर ने किया था ? या ऐसा कहूं कि ईश्वर के बनाए गए संसार को यहां के मनुष्यों ने अपने स्वार्थ और नफरत को जगा कर दूसरे संसार में तब्दील करने का प्रयास किया है जिसका परिणाम आज सबको भुगतना पड़ रहा है।
फिर क्यों खामखा तुम इल्जाम लगाते हो कि इस दुनिया में इतना पाप और अधर्म बढ़ गया मगर भगवान कुछ नहीं कर रहे ? आखिर पाप और अधर्म बढ़ने की वजह कौन है इंसान या भगवान, फिर क्यों तुम इल्जाम भगवान पर लगा रहे हो कि वो दोषी है ?
2. क्यों जुर्म खिलाफ आवाज उठाना है जरूरी ?
हकीकत में दोषी तो यहां के मनुष्य है, यदि एक घर में कई सदस्य रहते है और उनमें से कोई एक यदि कोई अपराध या जुर्म करता है तो पूरा परिवार उसके कुकर्मो का दोषी माना जाता है, क्योकि किसी ने आवाज नहीं उठाया उसके जुर्म के खिलाफ, उसकी गलतियों को सब नजरअंदाज करते रहे तो परिणाम भी सबको एक साथ भगतना पड़ेगा क्योकि दोषी उसी घर का एक सदस्य है, जिसने पूरे घर को बर्बाद कर दिया। ये संसार भी सभी मनुष्यो का घर है, फिर अपने इस घर को ईर्ष्या, नफरत और शत्रुता से आप सब ने ही बर्बाद किया है।
3. एक मुरझाया हुआ पुष्प क्या सीख दे जाता है ?
यदि आज आप अपने ही घर में अपने ही परिवार से दुखी है तो उसके कहीं ना कहीं जिम्मेदार आप खुद है। एक मुरझाए हुए पुष्प की कोई अहमियत नहीं होती, अहमियत होती है तो एक खिले हुए पुष्प की, जो खिल कर अपनी सुगंध से सबके मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, जिसे देखना हर कोई चाहता है, जिसके पास रहना हर कोई पसंद करता है। मगर एक मुरझाया पुष्प किसी को प्रिय नहीं होता, क्योकि जो खुद मुरझा चुका है वो क्या किसी के प्रेम का, किसी के साथ का पात्र बनेगा ? ईर्ष्या, नफरत, और घृणा भाव भी एक मुरझाए पुष्प के समान माना जाता है जिससे आज तक किसी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ है और ना कभी हो सकता है।
4. एक खिले हुए पुष्प से आप क्या सीखते है ?
सोचो कितना फर्क है एक खिले पुष्प और मुरझाए पुष्प में। एक खिले पुष्प को ईश्वर के समीप स्थान प्राप्त होता है, उसे ईश्वर को भेंट किया जाता है, मगर एक मुरझाए पुष्प को उठा कर किसी कचरे में फेक दिया जाता है। इसलिए हमें कभी किसी को खुश देख कर उससे ईर्ष्या या नफरत नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनकी खुशियों में उनके साथ खुश होना चाहिए तभी आप जीवन के वास्तविक सुख और प्रसन्नता को महसूस कर सकते है, जो आपको वास्तविक आनंद की अनुभूति कराता है।