कलयुग का अंत निकट है।

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चार युग है,जिसमें पहला है सतयुग,दूसरा त्रेतायुग,तीसरा द्वापरयुग और चौथा है कलयुग। 


1. सतयुग का परिचय। 


सतयुग- जिसमे केवल सत्य की राह को चुना जाता था, कोई भी अधर्म और पाप अपना शीश उठाने का प्रयास नहीं करता था, हर तरफ बस परोपकार,दयाभाव, प्यार और स्नेह से भरा सतयुग का काल था।लोभ, ईर्ष्या,घृणा, नफरत, अहंकार,क्रोध,स्वार्थ ये सब बुरे विकार और बुरे कर्म सतयुग में वर्जित था। आज इस कलियुग में जहां अपने ही लोग अपने परिवार से ईर्ष्या और नफरत की आग में जल रहे है, वहीं सतयुग में कोई भी मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य से कोई घृणा भाव और नफरत नहीं रखा करते थे, गैर इंसान भी गैरो के साथ अपने परिवार जैसा बर्ताव करते थे,मगर इस कलियुग में कुछ लोग अपनों के साथ ही गैरो सा बर्ताव करते है। 


2. त्रेतायुग और द्वापर युग का परिचय


मगर समय कहां ठहरता है,समय तो आगे बढ़ते ही जाता है, देखते ही देखते सतयुग का काल समाप्त हुआ, फिर आया त्रेतायुग मगर इस युग में भी अधर्म और पाप इतना नहीं बढ़ा था,मनुष्यो में इतनी कुरुरता नहीं समाई थी,मगर असुर जाति कहां शांत से बैठने वाली अपनी कुरुरता का प्रदर्शन तो वो करते ही रहते है,मगर त्रेतायुग में एकमात्र असुरो का ही आतंक बढ़ा जिनका भयंकर अंत हुआ। फिर यूं ही त्रेतायुग की भी समय अवधि समाप्त हुई, उसके बाद आया द्वापरयुग इस युग में आप सभी ने कृष्ण अवतार की अद्भुत लीलाओ का उल्लेख सुना। इस युग में भी कई अधर्मियों का अंत हुआ, कृष्ण की लीलाओ से भरा ये द्वापरयुग भी अपने समय अवधि के साथ समाप्त हुआ जिसके बाद शुरुआत हुई कलियुग की। 


3. कलयुग का परिचय। 


जहां सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग में अपने परिवार के लिए अपने प्राणो को भी न्यौछावर कर दिया करते थे, वहीं इस कलियुग के काल में लोग अपने लालच और स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपनों का ही कत्ल करने में जरा भी संकोच या अफसोस नहीं करते।तुम मनुष्य हो कोई भगवान नहीं जो किसी भी जीव की तुम हत्या करोगे, भगवान भी निर्दोष मासूम को कभी नहीं सताते, भगवान किसी भी मनुष्य की जान नहीं लेते, क्योकि जिसकी जितनी आयु है वो अपनी आयु को पूरा करने के पश्चात ही मृत्यु को प्राप्त होता है।आज इस धरा पर जो पाप अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर आगे बढ़ रहा है, यकीनन वो अपने अंत के समीप खुद ही पहुंच रहा है, सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग के मनुष्यो ने कभी दानव बनने का प्रयास नहीं किया यदि उनसे कोई भूल हुई तो उस भूल को उन्होंने स्वीकार भी किया और उसके लिए अपनी सजा कबूल किया मगर आज के मनुष्य अपनी भूल को कहां स्वीकार करते है ? 


बल्कि अपनी भूल और प्रत्येक बुरे कर्मो पर उन्हें खुद पर गर्व होता है, क्योकि उनकी भूल के लिए उन्हें सजा देने वाला अब तक कोई आया नहीं, यही वजह है जो आज इस धरा पर झूठ का बोलबाला है, झूठे लोग राज कर रहे है,धन धान्य से परिपूर्ण है और सच्चे लोग दुख दर्द तकलीफ को सहन कर रहे है, उनके पास ना ही अधिक धन है और ना ही अधिक सम्मान। क्योकि आज इस कलियुग में सम्मान भी वही पा रहा है जो झूठ और अधर्म के मार्ग पर चल कर  खुद के लिए आलिशान महलो का निर्माण करवा रहा तथा महंगी गाड़ियों में घूम रहा,चंद कागज के टुकड़ो से कुछ लोगो को खरीद कर जो अपने लिए बड़े पद और शासन की व्यवस्था करवा रहा। 


जहां सतयुग,त्रेतायुग,और द्वापरयुग में माता-पिता और बड़े भ्राता को ईश्वर तुल्य दर्जा और सम्मान दिया जाता था वहीं इस कलियुग में माता-पिता को ना ही सम्मान दिया जाता है ना ही प्यार, भाई ही भाई को देखना पसंद नहीं करता फिर क्या होगा इसका परिणाम किसी ने सोचा है ?


पति पत्नी एक दूसरे के पूरक माने जाते है,दोनों साथ जीने मरने की कसमे खाते है,हर दुख-सुख में एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते है। सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग में जो प्रेम, त्याग और विश्वास जीवित था वो प्रेम त्याग और विश्वास आज इस कलियुग में अब जीवित नहीं रहा। पति के लिए जो समर्पण सेवाभाव और सम्मान एक पत्नी के दिल में होना चाहिए वो इस कलियुग में अब बहुत कम देखने को मिलता है। अपने पति के सिवा किसी पराए पुरुष को देखना भी पाप कहलाता था, आज इस कलियुग में कुछ स्त्रियां अपने स्वार्थ और लालच के लिए अपने पति से धोखा कर किसी पराए पुरुष के साथ अपना सम्पर्क बना रही है,कहीं पर अपनी पत्नी को धोखा दे कर किसी पराई स्त्री के साथ पति अपना रिश्ता जोड़ रहा है। क्या है ये सब ? क्या कोई खेल है ? ये एक पाप है जिसका भुगतान तो एक दिन करना ही है। 


जहां सतयुग,त्रेतायुग और द्वापरयुग में छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता था, नवरात्री में कन्या पूजन कर उन्हें सम्मान दिया जाता था, आज इस कलियुग में उन्ही मासूम कन्याओ के साथ बड़ी कुरुरता के साथ बर्ताव किया जा रहा है, निर्ममता से उनकी हत्या कर दी जाती है, ये सब तुम मनुष्यो को शोभा नहीं देता,यदि तुम अपने असली कर्तव्य और अपने सही कर्म को भुला चुके हो तो अब समय के साथ तुम्हे अपने द्वारा किए प्रत्येक भूल का स्मरण कराने हेतु समय के साथ इस पर अंकुश लगाने हेतु इसका अंत करना अनिवार्य है। ताकि एक नए अध्याय की शुरुआत हो घोर अंधकार से भरी इस रात्रि का अंत हो और दिव्य  प्रकाश से भरी ऊर्जा के साथ एक नई सुबह की शुरूवात हो। 


ये कब होगा कैसे होगा इसे सबके प्रत्यक्ष उजागर करना किसी के बस में नहीं, यदि कोई आप लोगो को गुमराह कर रहा कि इस तारीख को कलियुग का अंत हो जाएगा तो ये सरासर गलत है क्योकि ईश्वर अपने लीलाओ का वर्णन पहले से उजागर नहीं करते ना ही किसी को इसका आभास कराते है क्योकि ये ईश्वर के नियम के विरुद्ध है। मैं कोई ज्योतिष नहीं,मैं कोई संत महात्मा नहीं,मैं कोई ज्ञानी महापुरुष नहीं,मैं कोई भगवान नहीं,मैं तो बस आप सभी मनुष्यो की शुभचिंतक हूँ,मैं तो ईश्वर की एक छोटी सी भक्त और उनकी सेविका हूँ। मेरा उदेश्य है आपको जागरूक करना, सत्य से आपको परिचित करना,दीनहीन प्राणियों की सहायता करना। 


रहा सवाल इस कलियुग के अंत का तो अंत केवल पाप और अधर्म का होता है,अंत केवल दुष्ट और कुरूर असुरो का होता है,यदि मनुष्य हो कर भी तुम अपनी कुरुरता और अधर्म पर अंकुश नहीं लगाए तो बड़ा ही भयावह अंत तुम्हारे नजदीक खड़ा है जिसकी अनुभूति तुम्हे समय के साथ होने लगेगी जब प्रकृति अपने मूल स्वरुप को धारण करेगी। 



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