आप कैसे हो ? आपकी सोच कैसी है ? आपका व्यवहार कैसा है ? समाज में लोग आपके लिए क्या सोचते है ? ये सभी काफी अहम बाते है जिसका ध्यान सबको रखना चाहिए।
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1. महानता का परिचय क्या है ?
केवल अपने मुँह से अपनी महानता का गुणगान करने से कोई भी व्यक्ति महान कहलाने का दर्जा हासिल नहीं कर सकता जब तक उसकी सोच, उसका व्यवहार, उसकी आदते और उसके कर्म उसके महान होने का प्रमाण नहीं देते। एकमात्र बड़े पद को ग्रहण कर लेने से आप महान नहीं कहला सकते जब तक आपको इसका बोध नहीं होता कि क्या उचित है और क्या अनुचित तब तक आप किसी बड़े पद को संभालने के काबिल नहीं बन सकते। क्योकि बड़ा पद बड़ी जिम्मेदारियों को भी दर्शाता है, यदि आप अपनी जिम्मेदारी को सही से नहीं निभा सकते तो आप कभी बड़े पद को संभालने योग्य नहीं हो सकते।
कुछ लोगों की एक बुरी आदत होती है कि वो चाहे बड़े होने की जिम्मेदारी निभाए अथवा ना निभाए मगर उन्हें इस बात का अभिमान होता है कि मैं सबसे बड़ा हूँ मुझसे छोटे मेरी हर आज्ञा का पालन करें मुझसे कोई ऊँची आवाज में बात ना करें, मैं मानती हूँ बड़ो को हमेशा सम्मान मिलना चाहिए मगर सम्मान भी आप तभी पा सकते है जब आप किसी को खुद से छोटा नहीं समझते आप भी सबको सम्मान देते है, उनकी अहमियत को समझते है, क्योकि केवल बड़े होने से ही आपको सम्मान हासिल नहीं हो सकता, सम्मान के योग्य बनना पड़ता है, अपने कर्मो से, अपने व्यवहारों से, अपनी अच्छी आदतों और उचित संस्कारों से।
2. क्या वाकई महान होने के लिए किसी बड़े पद की आवश्यकता नहीं होती ?
एक महान व्यक्ति होने के लिए किसी बड़े पद की जरूरत नहीं, क्योकि शासन और सत्ता किसी को बड़ा या महान नहीं सिद्ध करता बल्कि व्यक्ति के कर्म और उसकी सोच उसका महान होना निर्धारित करती है। इस बात को यूँ कहूं तो इस सत्य को जल्दी कोई स्वीकारना नहीं चाहेगा मगर यही तो सच्चाई है जिसे एक ना एक दिन सबको मानना है।
कुछ लोगों के पास शासन,सत्ता सब कुछ होता है, मगर उसका प्रयोग कब, कहां और कैसे करना है वो इसे समझ नहीं पाते अर्थात अपनी सत्ता का दुरूपयोग करने लगते है। क्या फायदा ऊँचे बड़े पद का जब आप अपने सही कर्तव्यों से वंचित हो जाओ ? क्या फायदा इतना बड़ा नाम और शोहरत कमाने का जब आप इंसानियत के नाम को ही भूल जाओ ?
मैंने अक्सर देखा और सुना है, कई लोग बड़े पद तो ग्रहण कर लेते है,लोगों से बड़े-बड़े वादे तो कर देते है, मगर उनके अपने घर में बुजुर्ग माता पिता का वो उचित देखभाल नहीं कर पाते, ना ही उन्हें वक्त देते है, ना उनके पास जा कर प्रेम के दो वचन बोलते है।
कुछ लोग तो नौकरो के हाथो से अपनी माता पिता की सेवा कराते है, ऐसे अज्ञानी ये बात कैसे भूल जाते है कि जब उनका बाल्यपन था तो उनकी माँ ने उनकी देखभाल की उनके पिता ने उनकी ऊँगली पकड़ कर उन्हें चलना सिखाया, खुद बुरे हाल में रह कर अपनी संतान को पढ़ा लिखा कर उस काबिल बनाया की बुढ़ापे में उनकी संतान उनका सहारा बने सोचो क्या गुजरती होगी उस माता पिता के दिल पर जिनकी संतान उनके स्नेह,दुलार,ममता और परोपकार का ये सिला दे रही है।
फिर तुम एक बड़े पद को ग्रहण कर कैसे खुद को महान कह सकते हो ? यदि वाकई तुम में महान कहलाने का गुण मौजूद है, यदि तुम्हारे अंदर की इंसानियत जिंदा है, यदि तुम्हे अपने माता पिता की कद्र और अहमियत का पता है, यदि तुम्हारे कर्म, तुम्हारी सोच,तुम्हारा व्यवहार अच्छा है तो यकीनन तुम महान कहलाने योग्य हो।

