भाग्य में जो विधाता ने लिखा हैं,वो हर हाल में मिल कर रहता हैं, कोई भी अपने भाग्य के विरुद्ध नहीं लड़ सकता, क्योकि हम तो एकमात्र कठपुतली हैं, हमारा डोर तो उस विधाता के हाथो में हैं,वो जिसे जैसे चाहे वैसे नचा सकते हैं। ऐसा ही कथन सुना होगा तुम सभी मनुष्यो ने।
क्या ये कथन सत्य प्रतीत होता हैं तुम्हे ? क्या वाकई तुम सब एक कठपुतली हो उस विधाता के ? क्या तुम्हारा भाग्य भी विधाता के ही इच्छानुसार ही बदल सकता हैं ? क्या ये कथन सत्य हैं ?
यदि मैं कहूं कि ये कथन बिल्कुल सत्य नहीं,ये असत्य हैं तो क्या तुम मानोगे ? तुम में से कुछ लोगो को मेरी बाते सही नहीं लगेगी,मगर जो अटल सत्य हैं उसे कोई बदल नहीं सकता,मेरे सत्य को कोई भी झुठला नहीं सकता,क्योकि ये वो सत्य हैं जिससे ये समस्त संसार अनभिज्ञ हैं।
**1. कौन सा अंधकार तुम्हें सफल होने नहीं दे रहा ?
आज इस सत्य से मैं उन लोगो को अवगत कराने जा रही हूँ,जो हिम्मत हार कर अपने भाग्य भरोसे बैठे हैं। अपनी आंखे खोलो सत्य को स्वीकारो,असत्य से स्वयं को बाहर निकालो,क्योकि जिस गहन अंधकार में तुम मनुष्य अपनी तमाम उम्र बर्बाद कर रहे हो,अब उस अंधकार को दूर करने का समय आ गया हैं,सत्य से अवगत होने का समय आ गया हैं। जाग जाओ अभी भी देर नहीं हुई, वरना जो सो रहे हैं, वो तमाम सोते ही रहेंगे,जो जाग गए वो अपने भविष्य के अंधकार को दूर कर पाने में सफल होंगे।
जो कहते हैं कि हम तो एकमात्र कठपुतली हैं, हमारी डोर तो उस उपरवाले के हाथ में हैं, वो जिसे जैसे चाहे नचाता हैं,सब उनकी इच्छाओ से नाचते हैं,यदि ये कथन सत्य हैं तो कोई मुझे बताए संसार में कई अपराध और पाप हो रहा हैं,क्या अपराधियों को भी विधाता ने कहा तुम अपराध करो ?
क्या वाकई उनकी डोर भी थाम रखा हैं उस विधाता ने यदि ऐसा होता तो कोई अपराधी इस धरा पर जन्म ना लेता। सत्य तो ये हैं कि विधाता बस तुम्हारा निर्माण करते हैं,तुम्हारा भाग्य लिखते हैं,मगर भाग्य के कुछ पन्ने वो खाली छोड़ देते हैं,ऐसा इसलिए यदि तुम्हारे अंदर इंसानियत और सच्ची लगन मौजूद होगी तो उस खाली पन्ने को तुम अपनी इच्छाओ से अपने भाग्य को स्वयं लिख पाने में सफल होंगे,अपने भाग्य से लड़ कर जो नहीं लिखा हैं उस पन्ने में उसे भी स्वयं अपनी सच्ची लगन और साहस से लिख पाने में कामयाब बनोगे।
**2. कौन बदल सकता है अपना भाग्य ?
यदि तुम्हारा मन जल की भाति निर्मल और पवित्र हैं,यदि तुम पूरी शिद्दत से कुछ पाना चाहोगे तो उसे हासिल करने से,उसे पाने से तुम्हे कोई रोक नहीं सकता,क्योकि तुम उसे पाने के योग्य हो,तुम्हारी मेहनत,तुम्हारी सच्ची लगन और तुम्हारा अटल विश्वास ही तुम्हे हर असंभव को संभव बनाने में तुम्हारी सहायता करता हैं।
इतना तो तुम भी जानते हो किया गया परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता,यदि तुम परिश्रम से पीछे नहीं हटोगे तो यकीनन तुम अपने भाग्य को बदल पाने में अवश्य सफल होंगे, भाग्य से लड़ने के लिए किसी भी हथियार और अस्त्र की आवश्यकता नहीं होती, क्योकि तुम्हारा भाग्य तुम्हारा शत्रु नहीं,भाग्य से लड़ने के लिए बुलंद हौसले और सच्ची लगन ही काफी होती हैं,भाग्य का काम हैं तुम्हे आजमाना कि तुम्हारे अंदर कितनी सहनशक्ति हैं,तुम स्वयं को कमजोर समझते हो या शसक्त,तुम्हारे अंदर की क्षमताओं को परखने के लिए ही ये नियति तुमसे परीक्षा लेती हैं,यदि तुम इस परीक्षा में जीत गए तो समझ लेना तुम्हारे भाग्य के ताले खुल गए और तुम अपने भाग्य से लड़ कर जीत गए।
मान लो तुमने किसी को अपना कोई कार्य सौंपा मगर वो व्यक्ति तुम्हारे कार्य को पूर्ण नहीं कर पाया तो क्या तुम खुद से प्रयास नहीं करोगे ? मान लो अभी तुम्हे बहुत तेज भूख लगी हैं मगर भोजन अभी बना नहीं तो क्या तुम स्वयं को भूखा रखोगे या भोजन खुद पकाओगे ? या ये विचार करोगे यदि भाग्य में लिखा होगा तो पका पकाया भोजन स्वतः ही तुम्हे मिल जाएगा ?
यदि तुम्हारी ऐसी विचारधारा हैं तो आज ही इस अंधकार से बाहर आ जाओ क्योकि कर्म किए बिना किसी को कुछ भी मिल पाना असंभव हैं।
कर्म फलं,कर्म सारथी,कर्म विना जीवनं निरर्थकं यतः निमीलितं दैवमपि कर्मद्वारा एव उद्घाट्यते।
अर्थात, कर्म ही फल हैं,कर्म ही सारथी,कर्म के बिना जीवन व्यर्थ हैं,क्योकि कर्म से ही खुलता हैं बंद किस्मत का भाग्य भी।

