परिवार की महत्ता।

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1. परिवार का सही अर्थ। 


 जहां हमारा परवरिश होता है, जहां हमे निस्वार्थ प्रेम और अपनेपन का बोध होता है, जहां पल कर हमे उचित संस्कारो का ज्ञान प्राप्त होता है, यही तो परिवार का सही अर्थ होता है। 


एक उंगली से तुम कोई वस्तु उठा नहीं सकते, मगर जब तुम्हारी पांच उंगलिया एकत्रित हो कर उस वस्तु को उठाती है तो तुम्हारा कार्य आसान हो जाता है तुम बहुत आसानी से उस वस्तु या सामान को उठा पाने में सक्षम होते हो ठीक वैसे ही यदि तुम अकेले किसी मुसीबत से गुजरते हो तो तुम्हे उससे बाहर आने में काफी वक्त लगता है मगर यदि तुम्हारे परिवार में एकता है सब यदि एक साथ उस मुसीबत का हल ढूंढने का प्रयास करते है, तो बहुत जल्द वो मुसीबत तुम्हारा पीछा छोड़ देती है और तुम्हारे लिए जिंदगी आसान हो जाती है।  


ईश्वर ने तुम्हे इसका प्रमाण भी दिया है मगर तुम मनुष्य उस प्रमाण को अपने अज्ञान की वजह से समझ पाने में असमर्थ हो इसलिए तुम अपने जीवन में दुःख, तनाव और चिंताओं से ग्रस्त हो। 


ये प्रमाण है तुम मानव के शरीर की रचना जिसका तुम सदुपयोग करो ना की दुरूपयोग मगर तुम आज अपने मार्ग से भ्र्ष्ट हो चुके हो जिसका प्रमाण हर दिन मिल रहा कि ऐसा बहुत कम ही घर होंगे जहां लड़ाई, झगड़े, कलह और अशांति ना हो। 


2. परिवार का महत्व। 


यदि तुम्हारा एक नेत्र काम करना बंद कर दे तो तुम्हारा दूसरा नेत्र तुम्हारे काम आ सकता है, यदि तुम्हारा एक हाथ काम करना बंद कर दे तो तुम्हारा दूसरा हाथ काम कर सकता है मगर यदि तुम्हारा एक पैर काम करना बंद कर दे तो तुम्हारा दूसरा पैर होते हुए भी वो तुम्हारे किसी काम का नहीं क्योकि तुम एक पैर पर खड़े हो कर नहीं चल सकते जब तक तुम्हारा दूसरा पैर ठीक नहीं होता, तुम्हे किसी सहारे की जरूरत पड़ेगी अगर तुम्हारा दोनों पैर सही सलामत होता तो तुम्हे किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ती।ठीक उसी प्रकार परिवार होता है यदि तुम्हारे परिवार का एक भी सदस्य तुमसे दूर हुआ तो ये मान लेना तुम्हारा सहारा तुमसे विलग हो गया और तुम समाज में पहले कि तरह सम्मानजनक खड़े नहीं हो सकते क्योकि तुम्हारा परिवार ही तुम्हारी ढाल है, तुम्हारी ताकत है। 


माता- पिता कभी गलत नहीं होते, परिस्थितियां ही उन्हें तुम्हारी नजरो में गलत बनाती है, जिससे तुम उन्हें नहीं समझ पाते और ना ही वो तुम्हे समझ पाते है, इसका मतलब ये नहीं कि तुम अपने परिवार को छोड़ कर उनसे दूर चले जाओ सारे रिश्ते खत्म कर दो। 


मान लो कोई तुमसे आ कर कहे कि तुमने उसके घर में कचरा फेंका है मगर तुमने फेंका ही नहीं तो तुम उसकी बात का यकीन नहीं करोगे क्योकि तुमसे बेहतर तुम्हे कोई अन्य नहीं जान सकता ठीक वैसे ही तुम्हारा परिवार होता है, जो तुमसे ही जुड़ा है चाहे तुम्हारे माता-पिता हो,या भाई बहन हो यदि कोई बाहरी इंसान तुम्हे तुम्हारे परिवार के खिलाफ कुछ कहने का प्रयास करे तो तुम्हे उसका विश्वास नहीं करना चाहिए और अपने परिवार पर कोई दोषारोपण नहीं लगाना चाहिए क्योकि परिवार एक विश्वास के कच्चे धागे के समान होता है यदि इसे खींचने या तोड़ने का प्रयास किया गया तो वो टूट सकता है और धागे में गांठ पड़ सकती है जो पहले की भांति नहीं जुड़ सकती। 


इसलिए भगवान ने तुम सभी मनुष्यो को अपनी आंखे दी है, अपना कान दिया है, ताकि तुम अपनी आंखो और कानो का सही इस्तेमाल कर सको वरना ईश्वर तुम्हे आंखे या कान देते ही नहीं जब तुम दूसरो के कानो और उनकी आंखो से देखी सुनी बातो पर यकीन कर लेते हो। 


जिस पैसे दौलत,जायदाद के लिए तुम अपने परिवार से बगावत करते हो वो पैसा,दौलत और जायदाद तुम्हारे किसी काम का नहीं क्योकि परिवार से बड़ा संसार का कोई दौलत नहीं होता, जिस पैसे को तुम अपना सब कुछ मानते हो वो पैसा आज तुम्हारे हाथ में है कल किसी दूसरे के हाथ में होगा तो वो पैसा कैसे तुम्हारा सब कुछ हो सकता है ? जिस परिवार को तुम पैसो के लिए खुद से दूर कर रहे हो वो परिवार दूर हो कर भी तुमसे दूर नहीं हो सकता क्योकि वो कहीं भी रहे, दुनिया के किसी भी कोने में रहे मगर उस परिवार का नाम उसकी पहचान सदैव तुमसे जुड़ी रहेगी जिस पर  केवल तुम्हारा अधिकार है। 


फिर क्यों अज्ञानता में डूब कर तुम खुद को अपने अधिकार से वंचित कर रहे, अपने परिवार को स्वयं से दूर करने की भूल कर रहे ?


परिवार तुम्हारे शरीर का ही अंग होता है, यदि तुम्हारे शरीर का एक भी अंग तुमसे दूर हुआ तो मान लेना तुम्हारा शरीर अब तुम्हारे किसी काम का नहीं, क्योकि पैसा किसी को उसकी खोई आंखो की रौशनी नहीं लौटा सकता ,पैसा किसी के कटे हाथ और पैर को पुनः नहीं लौटा सकता, फिर क्यों तुम अपने अंग को स्वयं ही विभाजित करने की भूल कर रहे हो ?


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