आईना आपको आपका परिचय देता है, जब भी आप आईने में खुद को देखते है तो आपकी असलियत से आईना आपको रूबरू कराता है। अपनी सूरत को निहारने के लिए ही आप आईने का प्रयोग करते है, कि आप आज कैसे दिख रहे है ?
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यदि आईना ना होता तो कोई अपनी वास्तविक सूरत से परिचित ना होता। मगर आईना आपसे कुछ और भी कहता है, क्या आपने कभी आईने में अपनी वास्तविक सीरत को देखा है ? आप मन से कैसे हो ? आपका दिल कैसा है ? आपकी सोच कैसी है ? क्या इसे आपने आईने में ढूंढने का प्रयास किया है ?
अब आप सब सोच रहे होंगे कि मैं कैसी बात कर रही हूँ, भला आईने में हमें अपना मन, अपना दिल, अपनी सीरत, अपनी सोच कैसे दृश्यमान हो सकती है ?
आईना तो केवल हमें हमारी सूरत से परिचित कराता है, हमारा मन तो हमारे भीतर बसा है, हमारा दिल तो हमारे भीतर बसा है, हमारी सीरत तो हमारे अंदर बसी है, रहा सवाल हमारी सोच का तो इसे भला कौन जान सकता है, इसे तो बस परखा जाता है।
1. आपका वास्तविक परिचय कौन देता है ?
हाँ मैं जानती हूँ, आईना केवल मनुष्य को उसके बाहरी स्वरूप को दर्शाता है, उसके मन, दिल,सीरत और सोच को नहीं, मगर एक आईना है जो मनुष्य को उसकी वास्तविकता से अवगत कराता है,मगर मनुष्य उसे अनदेखा कर जाता है। उस आईने का नाम है सत्य, जिसे कोई स्वीकारना नहीं चाहता, जिसे कोई अमल करना नहीं चाहता, जिसका साथ हर कोई नहीं देना चाहता, जिससे सब भयभीत रहते है, यदि सत्य उजागर हो गया तो सबके समक्ष उसका असली चेहरा, उसकी सीरत और उसकी सोच दृश्यमान हो जाएगी अर्थात सब उसकी वास्तविकता से अवगत हो जाएंगे।
मीठा तो अधिकांश लोग पसंद करते है, कुछ लोग किसी की मीठी बातों में भी आ जाते है, वो ये नहीं समझ पाते कि कभी- कभी मीठा भी उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
कड़वा, तीखा भोजन जल्दी कोई पसंद नहीं करता और ना ही किसी को कड़वी बातें पसंद आती है, करेला भी कड़वा होता है, मगर चिकित्सक भी करेले का सेवन करना सेहत के लिए लाभदायक बताते है,जिससे कई बीमारियों से बचा जा सकता है, ये उदाहरण देना जरूरी है उनके लिए जो बिना विचारे किसी की बातों में आ कर गलत रास्ते का चुनाव कर लेते है, जरूरी नहीं जो तुमसे प्यार से बात कर रहा है, मीठे और मधुर वचन बोल रहा है वो तुम्हारा हितैषी हो, जरूरी नहीं जो तुम्हें तीखे बोल बोल रहा, तुम्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक रहा वो तुम्हारा शत्रु हो, ये कलयुग है इस बदलते युग में सच को बहुत कम लोग स्वीकारना चाहते है, झूठ और फरेब को कोई भी आसानी से स्वीकार कर लेता है, क्योकि झूठ के कई रूप होते है, मगर सच का बस एक ही रूप होता है, जो ना ही किसी के लिए बदलता है और ना ही किसी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
2. सूरत से भी अधिक महत्व रखता है आपकी सीरत।
सच तो आईने की तरह साफ होता है, जिसमे सबको उसके असलियत का पता चलता है। इसलिए अपनी सूरत पर ध्यान देने से पूर्व आप पहले अपनी सीरत पर भी ध्यान दे, अपने मन और दिल को पवित्र और साफ रखे, जिससे आपकी सोच पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़े, क्योकि आपकी सोच ही दूसरो को आपका वास्तविक परिचय कराती है, ना की आपकी सूरत।

