सत्य को स्वीकार करना और हमेशा उसके साथ खड़े रहना हर किसी के बस की बात नहीं है।
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1. कोई भी ऊँचा और बड़ा पद आपको बड़ा कहलाने का दर्जा नहीं देता इस कथन का तात्पर्य क्या है ?
केवल ऊंचे बड़े पद को प्राप्त कर लेने से कोई बड़ा नहीं हो सकता जब तक उसमे सबके लिए सम्मान की भावना जागृत नहीं होती। यूंही बड़े पद को हासिल करने से कोई बड़ा नहीं बनता,बड़े बनने के लिए सोच भी बड़ी रखनी पड़ती है।
इंसान तब तक दूसरों की तकलीफ और दर्द को नहीं समझ सकता जब तक उस तकलीफ और दर्द से वो खुद नहीं गुजरता।क्या तुम्हे पता है कि इंसान का सबसे बड़ा शत्रु कौन है ? इंसान का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार होता है,जिस अहंकार में वो सबको खुद से छोटा,और खुद को सबसे बड़ा और महान समझने की भूल करता है।
यदि तुम जन्म से ही रईस हो तो शायद जब तुम्हारा जन्म हुआ होगा तुम हीरे और सोने पहन कर ही इस दुनिया में आए होंगे, या जैसे साधारण बच्चा निवस्त्र जन्म लेता है वैसे तुम भी पैदा हुए ? फिर किस बात का अहंकार है तुम्हे ? जब ना ही इस दुनिया में आते वक्त तुम साथ कुछ लाए,और ना ही इस दुनिया से जाते वक्त तुम कुछ ले कर जाओगे फिर किस बात का तुम अभिमान दिखाओगे ?
ये जो तुम अहंकार दिखा रहे हो, ये किसी काम का नहीं यदि तुम्हे सत्य सुनना है तो सुनो,तुम्हारा शरीर भी तुम्हारा नहीं जिस पर तुम्हे इतना अभिमान है, तुम्हारा धन भी तुम्हारा नहीं जिस पर तुम्हे इतना अहंकार है, यदि तुम्हारा कुछ है तो वो है तुम्हारे कर्म जो जीते जी और मरने के बाद भी तुम्हारा सारथि बन कर तुम्हारे साथ रहता है, यदि तुम्हारे कर्म भी सही नहीं तो समझ लेना तुमसे बड़ा निर्धन और बदकिस्मत कोई अन्य नहीं हो सकता। क्योकि सबसे कीमती चीज को तुम संभालना भूल गए, संसार की मोहमाया में उलझ कर धन वैभव की चकाचौंध में फंस कर तुम अपने अहंकार में इतने अंधे हो गए कि तुम्हे अच्छा क्या है और बुरा क्या यही समझ नहीं आ रहा ?
2. कैसे होता है एक अहंकारी का विनाश ?
एक अहंकारी का विनाश सबसे पहले वहां से शुरू होता है, जिसे पा कर उसके अंदर अहंकार समाया, यदि ये धन है तो सबसे पहले उस अहंकारी का कीमती धन नष्ट किया जाता है, जिस धन को पा कर वो इतना अंधा हो गया कि किसी भी इंसान का तिरस्कार करने से पीछे नहीं हटा।
अपने अहंकार में उसने अपने बड़ो का भी तिरस्कार किया, माता-पिता का निरादर किया ऐसे अहंकारी का विनाश तो एक ना एक दिन होता ही होता है,चाहे देर हो या सवेर प्रत्येक मनुष्यो के कर्मो का हिसाब अवश्य होता है।
3. अहंकार पर नियंत्रण क्यों है जरूरी ?
यदि तुम ऊंचे पद को प्राप्त कर चुके हो, और कोई असहाय गरीब तुम्हारे पास एक मदद की उम्मीद लगा कर आया है, मगर तुमने उस असहाय की पुकार को ठुकराने का प्रयास किया है तो वो दिन दूर नहीं जब तुम उस असहाय के स्थान पर स्वयं को पाओगे और उस असहाय को अपने ऊंचे बड़े पद पर पाओगे। ये समय का खेल है, ये नियति का उसूल है जिसने जैसा कर्म किया है, उसे उसका मूल अवश्य चुकाना होगा।
संसार के सभी मनुष्यो से आज मैं एक बात अवश्य कहना चाहूंगी, '' यदि तुम्हे ईश्वर ने इतना बड़ा पद संभालने के काबिल बनाया है तो उसके पीछे कोई ना कोई मुख्य कारण अवश्य होगा, ईश्वर देखना चाहते है कि तुम इस बड़े पद को संभालने योग्य हो भी या नहीं, यदि बड़े पद को प्राप्त कर तुम्हारे भीतर अहंकार समाने लगता है तो ये मान लेना तुमने जिंदगी के एक बहुत कीमती और सुनहरे अवसर को अपनी भूल और मूर्खता के कारण गवा दिया साथ ही साथ तुमने स्वयं को ईश्वर के कोप का भाजन भी बना लिया।
* अहङ्कारः मनुष्यस्य पतनस्य मार्गः इति कथ्यते, अहङ्कारः मनुष्यस्य बृहत्तमः शत्रुः, यः अहङ्कारात् मुक्तिं प्राप्तवान् सः ईश्वरस्य कठोरपरीक्षां उत्तीर्णः अस्ति।
अर्थात, अहंकार व्यक्ति के पतन का मार्ग कहलाता है, अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है,अहंकार से जिसने मुक्ति पा लिया, उसने ईश्वर की कड़ी इम्तिहान को पास कर लिया।

