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1. एक पवित्र और मजबूत रिश्ते की नींव क्या होती है ?
एक दाम्पत्य रिश्ता विश्वास,प्यार और सम्मान के बल पर ही टिका होता हैं,यदि तुम्हे अपने जीवनसाथी पे विश्वास ही नहीं फिर तुम्हारा ये रिश्ता किसी काम का नहीं, क्योकि सच्चा प्यार वो होता हैं जिसे खुद से ज्यादा अपने जीवनसाथी पे यकीन हो, जिसे खुद से ज्यादा अपने जीवनसाथी की परवाह हो, जिसके दिल में अपने जीवनसाथी के लिए सम्मान हो,तभी वो रिश्ता मजबूत और पवित्र कहलाता हैं।
2. क्यों बिखर रहा दाम्पत्य रिश्ता ?
आजकल के युवा पीढ़ी अपने अनुचित व्यवहार के कारण भी अपने रिश्ते को बर्बाद कर लेते हैं। क्योकि जब तक तुम किसी का दिल से सम्मान नहीं करोगे तब तक तुम्हे किसी से भी सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता। यदि तुम किसी के साथ दुर्व्यवहार करोगे तो बदले में तुम्हे भी वहां से अपमान के सिवा कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता।
चाहे कितने भी युग बदल जाए,चाहे समय कितनी भी तेजी से बढ़ जाए मगर मेरी एक बात सदैव स्मरण रखना,यदि कुछ नहीं बदलता तो वो हैं संस्कार,यदि तुम्हारे भीतर संस्कार मौजूद होंगे तो तुम कभी किसी भी इंसान का अपमान नहीं कर सकते। जो लोग इस बदलते युग के साथ अपने संस्कारो को भी बदल देते हैं,वो लोग अक्सर अपनी जिंदगी में अप्रसन्न रहते हैं,क्योकि जब तुम्हारे अंदर ही उचित संस्कार का वास नहीं होगा,तो तुम्हे किसी अन्य से प्यार और सम्मान कहां से प्राप्त होगा ?
जो सुख और आनंद किसी को सच्चे प्यार से प्राप्त हो सकता हैं, वो सुख और आनंद दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। क्योकि सच्चा प्यार निर्मल और पवित्र होता हैं,जिसमे ईश्वर का आशीर्वाद मौजूद होता हैं। पति हो या पत्नी दोनों को एक दूसरे की हर परेशानी और तकलीफ को समझना चाहिए, एकमात्र अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए यदि तुमने किसी से रिश्ता जोड़ा हैं, तो मेरी ये बात अवश्य याद रखना,'' की स्वार्थ की पूर्ति के लिए जोड़ा गया कोई भी रिश्ता बेहतर परिणाम नहीं दे सकता।
क्योकि ''जिस रिश्ते में स्वार्थ समाने लगता हैं,वो रिश्ता एक दिन कांच की तरह टूट कर बिखर जाता हैं,यदि टूटने के बाद उसे समेटा भी गया तो वो दोबारा पहले की भाति जुड़ नहीं सकता।
अहंकार तो व्यक्ति के पतन का मार्ग कहलाता हैं, इसलिए भूल कर भी अपने रिश्ते में अहंकार को प्रवेश ना करने दे। झूठ और धोखे को अपने जीवन में कभी शामिल ना करे, क्योकि दाम्पत्य रिश्ते में इसके लिए कोई स्थान नहीं। जो दाम्पत्य रिश्ता तुमने अग्नि को साक्षी मान कर जोड़ा हैं,उस पवित्र रिश्ते को तुम अपने झूठ और धोखे से अपवित्र कैसे कर सकते हो ?
ऐसा सोचना भी पाप हैं,तो यदि कोई अपने जीवनसाथी के साथ धोखा करता हैं,या उससे झूठ कहता हैं,तो वो ईश्वर का भी दोषी माना जाता हैं, तथा ऐसे लोगो को अपने जीवन में कभी सच्चे प्यार का सुख प्राप्त नहीं होता, पैसा धन-दौलत होने के बावजूद भी ऐसे लोग अपने जीवन में अक्सर अकेले रह जाते हैं। शक का भी स्थान एक दाम्पत्य रिश्ते में नहीं होना चाहिए, क्योकि शक यदि एक बार किसी रिश्ते में अपना स्थान बना लेता हैं,तो वो रिश्ता पल भर में खत्म हो जाता हैं। जब तक तुम्हे पूर्णतः सत्य का पता नहीं तब तक भूल कर भी अपने दाम्पत्य जीवन में शक को प्रवेश ना करने दो अन्यथा ये शक तुमसे,तुम्हारी हर खुशियों को दूर कर देगा।