जब तेज गर्मी सताती हैं तो आप बहुत बेसब्री से वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं क्योकि अत्यधिक गर्म तापमान आपको बर्दाश्त नहीं होता मगर जब वर्षा होने लगती हैं तो गर्मी से थोड़ी राहत मिलने लगती हैं फिर आप गर्मी से निजात पा कर काफी सुकून और आनंद का अनुभव करते हो मगर जब यही वर्षा जब भारी बारिश में बदल जाती हैं तो काफी नुकसान कर जाती हैं कुछ सहरो में तो बाढ़ आने का खतरा बना रहता हैं तो कहीं बाढ़ आ कर कई लोगो के घरो को क्षतिग्रस्त कर जाता हैं साथ ही साथ कई लोगो को अपने भयंकर बहाव में बहा ले जाता हैं।
तो इससे यही मालुम होता हैं की किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती हैं। क्योकि इससे हमारा ही नुकसान होता हैं। अति किसी भी अवस्था में किसी के लिए बेहतर साबित ना कभी हुई हैं ना ही कभी होगी।मगर ये तो दुनिया का उसूल हैं यहां परिणाम की चिंता कौन करता हैं ? बाद में परिणाम कुछ भी अंजाम से कौन डरता हैं अभी तो फायदा हो रहा हैं बस उससे मतलब होता हैं लोगो को।
बस इतना सवाल हैं मान लो तुमने कहीं एक बड़े से गृह का निर्माण कराया ताकि तुम और तुम्हारा परिवार उस गृह में निवास कर सके मगर उस गृह को तुम्हे किसी के वजह से यदि तोड़ना पड़े या वहां से जाना पड़े तो क्या तुम्हे इस बात से दुःख या पीड़ा का अनुभव नहीं होगा ? अवश्य तुम्हे सहन नहीं होगा क्योकि तुमने काफी मेहनत से स्वयं के लिए वो गृह बनाया हैं किसी को हक़ नहीं वो तुमसे तुम्हारे परिवार से उनकी खुशियां छीन सके। क्योकि ये तो अन्याय हैं।
आज वो अन्याय मानव कर रहे पाप के भागीदार बन रहे, किसके गुनहगार बन रहे ? ईश्वर के ही नजरो में गुनहगार हैं वो सभी मनुष्य । इस संसार को बनाया किसके लिए ? तुम मनुष्यों को बनाया आखिर किसलिए ? अब समय नहीं हैं की सभी को शास्त्र का पाठ पढ़ाया जाए क्योकि शास्त्र का ज्ञान एकमात्र वही धारण कर सकता हैं जो हर बुरे कर्मो से स्वयं को सुरक्षित रखता हैं। एक पवित्र ज्ञान को जानने और समझने के लिए सभी के पास आंतरिक ज्ञान का होना आवश्यक हैं और आंतरिक ज्ञान को संभाल पाना सभी के बस में कहां ? ये ज्ञान वही इंसान संभाल पाता हैं जिसमे इंसानियत का वास होता हैं जो सही और गलत के लिए सदैव आवाज उठाता हैं। जो किसी अधर्म को देख कर भी उसपे पर्दा डालने का या उसे अनदेखा करने का पाप नहीं करता हैं।
जब किसी भी चीज का अंत होना होता हैं तो वो अति विस्तार में स्वयं का स्थान बनाने का प्रयास करने लगता हैं जैसे एक दिया जो बुझने से पूर्व अति प्रकाशमय होने लगता हैं और उसकी बाती बहुत तेज धधक कर बुझ जाती हैं ठीक वैसे हो रहा हैं इस धरा पर किसी को अति कष्ट देना,किसी की अत्यंत पीड़ादायक निर्मम हत्या करना ये अति नहीं तो और क्या हैं ? यही अति जल्द ही दुर्गति में तब्दील होने वाली हैं जो इस संसार को,बनाए गए ईश्वर द्वारा नियमों को तोड़ कर अपनी सीमाओं को पार करने की चेष्ठा कर रहे हैं। ये एक भयंकर अंत की शुरूआत की ओर का संकेत हैं।
अति तो हर परिस्थिति में किसी के लिए भी फलदायक साबित नहीं होती अब आप भोजन को ही ले लो, जब आप अधिक भोजन कर लेते हैं तो वही भोजन आपको फायदा के स्थान पे नुकसान पहुंचा जाता हैं। विश्राम हो या निद्रा वो भी अधिक अच्छा साबित नहीं होता। तो यहां बात हैं बुराई की किसी निर्दोष के साथ पाप और अधर्म की ये जो अति हुई हैं पाप की,अब ये एक प्रलय की शुरुआत हो चुकी हैं।
किसी के हंसते -खेलते घर को जब कोई उजाड़ने का पाप करता हैं तो एक दिन उसका भी घर अवश्य क्षतिग्रस्त होता हैं जरुरी नहीं एक बस अपनी ही जिंदगी और अपनी ही खुशी मायने रखती हैं तुम्हे भी जो जिंदगी मिली हैं वो तुम्हारी खुद की नहीं बल्कि तुम्हे भी जिंदगी ईश्वर से मिली हैं वो जिसकी जिंदगी तुमने बर्बाद की हैं उसकी जिंदगी तुम्हारी कैसे हो सकती हैं जो तुम किसी की जिंदगी के साथ खेलने का पाप करो उसकी जिंदगी मिटाने का पाप करो ? अब तो तुम बस अपनी दुर्गति का इंतेजार करो क्योकि वो जल्द ही दस्तक देने वाली हैं।
क्या हैं प्रकृति का जवाब समस्त संसार के लिए ?
मैं प्रकृति हूँ सभी को धारण करती हूँ सब मेरी ही संतान हैं मगर ये ना भूलना जब मेरी ही संतान किसी अन्य संतान को पीड़ा या कष्ट पहुंचाने का प्रयास करेगी तो उस अधर्मी संतान को मेरे भयंकर आक्रोश में जलना होगा प्रकृति के नियमों के साथ खेलना उस अधर्मी के लिए महंगा होगा क्योकि प्रकृति का एक ही उसूल हैं संतुलन स्थापित करना जहाँ पर असंतुलन होगा प्रकृति अपना रौद्र रूप अवश्य धारण करेगी हर अति का अंत करेगी और पुनः प्रकृति में संतुलन स्थापित करेगी।


