कलयुग का अहम इम्तिहान। (Important Test of Kalyug.)

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जहाँ जुर्म,पाप,अधर्म का डेरा हैं उसे मिटाने का कर्तव्य मेरा हैं-🪔


क्यों मेरा और तुम्हारा करते हो क्यों अपनों के साथ ही गैरो सा व्यवहार करते हो हकीकत में यहां कुछ भी किसी का नहीं हैं ये दौलत ये पैसा ये गाड़ी ये बंगला सब एक माया का जाल हैं बेहतर यही होगा इस माया से बाहर आ जाओ सत्य से अवगत हो जाओ अन्यथा कही ऐसा ना हो की बाद में तुम्हे अपनी भूल पर पछतावे का भी मौका ना मिले। 


एक माँ की ममता भी इस कलयुग में शर्मसार हो गई एक पिता का स्नेह भी इस कलयुग में शर्मसार हो गया, भाई-भाई का शत्रु बन बैठा,भाई-बहन का भी रिश्ता टूट कर बिखर गया हर गली हर मोहल्ले में बस एक ही चर्चा हैं, जो हो रहा इस धरती पर अन्याय और अधर्म ये क्या ईश्वर को नहीं दिखता हैं ?


ऐसा कथन कहने से पूर्व ये विचार अवश्य करना क्या अधर्म और अन्याय का विस्तार ईश्वर ने किया ? क्या आज के मनुष्यो में जो लोभ-लालच बस रही उसका विस्तार ईश्वर ने किया ?अधर्म और पाप करने वाले मनुष्यो तुम्हारे सृजनकर्ता हैं वो ईश्वर उन्होंने तुम्हे इस धरा पर मनुष्य बना कर इसलिए भेजा ताकि तुम मनुष्यो जैसे व्यवहार करो ना की जानवरों सा कुरुरता दिखाओ ना ही हिंसक बनो। 


कलयुग में कैसे हो रही भक्तों की परीक्षा ?


आज इस कलयुग में मनुष्य की चेतना उसका साथ क्यों नहीं दे रही इसका मुख्य कारण हैं सांसारिक माया जो प्रतिपल मनुष्य को भटकाने का कार्य कर रही हैं जिसे आज कोई भी समझने को तैयार नहीं।सांसारिक मोह माया ही आज इस धरा पर हर मनुष्यों को अपने वश में कर रखा हैं जिससे चाह कर भी कोई बाहर नहीं आ सकता। 


जिसके पास अधिक धन हैं उसमे अहंकार का वास हैं जिसके पास कुछ भी नहीं उसे धन के ना होने का शोक हैं मगर कुछ ऐसे भी मनुष्य हैं जिनके पास अधिक धन हैं मगर उनमे कोई अहंकार का वास नहीं कुछ ऐसे भी मनुष्य हैं जिनके पास कम धन होने के बावजूद भी कोई लालच और स्वार्थ नहीं।


कुछ मनुष्य ईश्वर की भक्ति करते अवश्य हैं मगर उनके भीतर स्वार्थ,अहंकार,लोभ,लालच सब समाहित होता हैं उन्हें ऐसा लगता हैं जो सांसारिक सुख धन वैभव की प्राप्ति उन्हें हो रही हैं वो ईश्वर की मेहरबानी हैं जो ईश्वर उनके पूजा-पाठ से प्रसन्न हो कर उन्हें सब कुछ प्रदान कर रहे हैं इसी अहंकार में ना जाने कितने मनुष्य आज ईश्वर के कोप के भागीदार बन चूके हैं इसका भान उन्हें भी नहीं की ईश्वर ने उन्हें जो ये धन दौलत प्रदान किया वो इसलिए नहीं किया की वो उनसे प्रसन्न हैं बल्कि इसलिए किया हैं ताकि ईश्वर ये देख सके की वो इस धन की प्राप्ति के बाद क्या करता हैं उसमे अहंकार होता हैं या नहीं या वो धन पा कर सदैव जग कल्याण की भावना रखता हैं।


यही वजह है की इस कलयुग में सच्चे भक्तों के पास धन की कमी हैं और ढोंगी भक्तों के पास अधिक धन हैं जिसे पा कर वो अपना विवेक खो बैठे हैं, सही को गलत और गलत को सही में तब्दील करने की मूर्खता कर रहे हैं। धन-दौलत और पैसा सबको प्राप्त हो सकता हैं मगर संतोष सबमे नहीं पाया जाता यदि कुछ ना होने के बावजूद तुम्हारे भीतर संतोष समाहित हैं तो ये मान लेना तुम संसार के परम आनंद और वैभव को पा चुके हो वो परम आनंद तुम्हे एक दिन ईश्वर से मिलाने में तुम्हारा सहायक बनेगा क्योकि परम आनंद में ही ईश्वर का वास हैं और इसकी अनुभूति हर किसी को नहीं हो सकती।


जरा विचार करो तुम किसी कार्य हेतु घर से बाहर अवश्य जाते हो मगर अपना कार्य संपन्न कर लौट कर पुनः अपने घर ही आते हैं उसी तरह तुम्हारा असली स्थान कहीं और हैं तुम्हे तो इस धरा पर कुछ कार्य पूर्ण करने हेतु भेजा गया हैं अब देखना ये हैं की तुम इस कार्य को किस तरह पूर्ण करते हो क्योकि जब तुम्हारा समय पूरा होगा तुम्हे अपने असली निवास पर ही जाना होगा वहां जा कर अपने प्रत्येक कर्मो का हिसाब देना होगा ये अवश्य ध्यान रहे ईश्वर के हिसाब में और न्याय में कभी कोई चूक नहीं हो सकती इसलिए अभी भी समय हैं या तो अपने कर्मो को सुधार लो या फिर ईश्वर द्वारा अपने कर्मो की सज़ा के लिए अभी से ही सजग हो जाओ।   


धन-दौलत,पैसा सब यही रह जाता हैं यहां तक की तुम्हारा शरीर भी साथ छोड़ जाता हैं क्यों मृत्युपरांत शव को जलाने की परम्परा हैं ये तुम मानवो को क्या सीख प्रदान करती हैं कभी इस पर विचार किया हैं ? क्योकि ये मानव तन नश्वर हैं,धन दौलत पैसा सब नश्वर है,यदि कुछ सत्य हैं अमर हैं तो वो हैं तुम्हारी आत्मा,तुम्हारे कर्म जो मिटाए नहीं मिटता जो नष्ट नहीं हो सकता इसलिए अपनी आत्मा को पवित्र करने का प्रयास करो वैर भावना को स्वयं से दूर करने का प्रयास करो अपने अच्छे नेक कर्मो से असहाय,जरुरतमंदो की सहायता करने का प्रयास करो। यकीनन तुम ईश्वर से साक्षात्कार कर पाने में सफल होंगे और इस कलयुग में भी ईश्वर के होने के प्रमाण को जान पाने में सफल होंगे। 


क्योकि यदि तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो तो तुम्हारे अंदर कोई विकार मौजूद नहीं हो सकते तुम यदि सत्य में ईश्वर के सच्चे भक्त हो तो तुम कभी अपने बुजुर्गो का माता-पिता का अपमान नहीं कर सकते,तुम यदि स्वयं को ईश्वर के सच्चे भक्त समझते हो तो तुम कभी जुर्म,अधर्म और पाप नहीं कर सकते,तुम यदि ईश्वर के सच्चे भक्तो में से एक हो तो तुम अपने स्वार्थ के लिए कभी किसी के साथ गलत नहीं कर सकते क्योकि स्वयं को  ईश्वर के वत्स कहलाने की उपाधि देने वाले वत्स ये अवश्य याद रखना ईश्वर सदा न्याय का साथ देते हैं अन्याय का नहीं और तुमने सांसारिक मोहमाया में उलझ कर किसका चुनाव किया हैं न्याय का या अन्याय का ये बात भी आज अपने जहन में अवश्य डाल लेना। 


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