ईश्वर एक हैं सारी जाति और मजहब भी एक हैं यदि इस बात पर किसी को संदेह हैं तो क्या ये सबूत काफी नहीं की हर दिन सूरज की रौशनी सबको एक समान रौशन करती हैं हर रात का चाँद सबको अपनी शीतलता एक समान प्रदान करता हैं। अब मैं अटल सत्य कहूँ तो ईश्वर ने कोई जाति और मजहब नहीं बनाया ये तो मनुष्यो विचारधाराएं होती हैं जो उन्हें सत्य से विमुख रखने का कार्य करती हैं,और दिखावे भरी जिंदगी जीने को विवश करती हैं।
इस संसार में कोई भी रिश्ता विश्वास और सम्मान पर ही टिका रह सकता हैं चाहे रिश्ता भक्त का भगवान से हो या रिश्ता इंसान का इंसान से हो। मगर भक्ति ऐसी हो जिसमें लेश मात्र भी स्वार्थ और लालच का कोई स्थान ना हो तभी वो भक्ति सार्थक परिणाम दे सकती हैं।
आज इस कलयुग में मनुष्य का हर मनुष्य से दुश्मनी की एकमात्र वजह हैं उनके मन में बसा स्वार्थ,लालच,ईर्ष्या और अहंकार। यही बुरे विकार मनुष्यो को ईश्वर से भी दूर कर रखा हैं जिसका उन्हें अनुमान ही नहीं। जब किसी की प्राथनाएं ईश्वर द्वारा नहीं सुनी जाती तो उस मनुष्य का विश्वास ईश्वर से कम होने लगता हैं यही वजह हैं की आज इस कलयुग में बहुत से लोग धर्म परिवर्तन में लगे हैं यदि ईश्वर की पूजा उन्हें बेहतर परिणाम नहीं देती तो लोग एक पल में बिना सोचे ईश्वर भी बदल देते हैं।
ये तो बस मनुष्य की समझ का फर्क हैं क्योकि सत्य को आजतक कोई बदल नहीं सका ना ही बदल पाएगा ईश्वर सत्य हैं और जहाँ सत्य विराजमान हैं वहाँ असत्य के लिए कोई स्थान नहीं। जब कोई दुखद घटना घटित होती हैं तो लोग ईश्वर को दोषारोपण करने लगते हैं,जब कोई कार्य सफल नहीं होता तो लोग ईश्वर को भला-बुरा कहना शुरू कर देते हैं मगर अपनी त्रुटि को भला कौन देखता हैं ?
जब आपकी कोई मन्नत पूरी नहीं होती तो आप उसका जिम्मेदार भी ईश्वर को ठहराते हैं कभी ये विचार नहीं करते कि हो सकता हैं आपकी वो मन्नत आगे चल कर भविष्य में आपके लिए संकट का कारण भी बन सकती हैं जिसका अनुमान आपको नहीं मगर ईश्वर को हैं।
आज के कुछ युवा प्रेम को खेल समझते हैं बहुत कम ही ऐसे युवा होंगे जिन्हे प्रेम का सही अर्थ पता हैं। कुछ युवा या युवती ईश्वर से अपना मनचाहा जीवनसाथी माँगते हैं वो यही चाहते हैं जिनसे वो प्रेम करते हैं उनका विवाह उससे ही हो मगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता तो वो ईश्वर पर अपनी आस्था और विश्वास खो बैठते हैं ऐसे युवाओ से मैं एक ही बात कहना चाहूँगी सही और गलत की परख जितना ईश्वर को हैं उतनी परख आप मनुष्यो को नहीं हैं इसलिए जो ईश्वर को आपके लिए बेहतर लगता हैं वो आपके नसीब में वही लिखते हैं इसलिए शिकायत करने से बेहतर होगा आप स्वयं को ईश्वर का शुक्रगुजार माने।
जन्म और मरण एक ऐसा चक्र हैं जिससे हो कर सभी को एक ना एक दिन गुजरना हैं क्योकि विनाश से ही नया निर्माण संभव हैं। मगर मनुष्यो ने ईश्वर के बनाए नियमो को तोड़ने का प्रयास किया हैं जिसका भुगतान ये प्रकृति आज सबसे ले रही हैं। मनुष्य का नास्तिक होना इस बात का प्रमाण हैं की उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं और जहाँ ईश्वर पर ही संदेह हो वहाँ कोई भी अपने कल्याण की भावना को भला कैसे बनाए रख सकता हैं ?
दुःख से विचलित होने वाले मनुष्यो से मैं आज एक ही बात कहना चाहूँगी की कुछ भी इस संसार में स्थाई नहीं हर दुःख के बाद सुख के दिन आते हैं हर अँधेरी रात के बाद एक नई सुबह की शुरुआत होती हैं, मौसम में परिवर्तन होते हैं यहाँ तक की मनुष्यो की आयु में भी परिवर्तन अनिवार्य हैं ये प्रकृति और ईश्वर का नियम हैं इस नियम से जब ईश्वर भी विमुख नहीं जब ईश्वर भी अपने बनाए नियमो का पालन करते हैं तो भला मनुष्य कैसे विमुख हो सकते हैं ?

