महाकुंभ एक अलौकिक रहस्य।

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प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित, महाकुंभ मेला एक अद्भुत गहन अर्थ रखता है, जो आत्म-साक्षात्कार, शुद्धि, पवित्रता  और आध्यात्मिक ज्ञान की शाश्वत खोज की प्रतीकात्मक यात्रा के रूप में कार्य करता है।महाकुंभ मेला, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है, जो करीब 2000 साल से भी ज़्यादा पुराना है, जिसे भारत में चार पवित्र तीर्थ नदी स्थलों पर मनाया जाता है। 




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1. कब शुरु हो रहा महाकुंभ शाही स्नान ?

भक्तो की आस्था और विश्वास का प्रतीक भारत के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक पवित्र तीर्थ स्थल जिसे प्रयागराज के नाम से जाना जाता है ये महाकुंभ मेला वहीं आयोजित है जहां अनेको साधु, संत,महात्मा और भक्तो की भीड़ एकत्रित होती है। दिनांक 13th जनवरी 2025  से शुरू होकर दिनांक 26th फरवरी, 2025 तक महाकुंभ मेला चलेगा। ग्रहों की स्थिति यह तय करती है कि कुंभ मेला कब लगेगा। पौराणिक कथा के अनुसार, कुंभ की कहानी अमृत मंथन के समय अमृत को प्राप्त करने के लिए लड़ाई से जुड़ी है, जिसमें वर्णित कथा के अनुसार अमृत चार स्थानों पर गिरा था।


2. क्या है महाकुंभ शाही स्नान का रहस्य ?

महाकुंभ को जानने से पूर्व ये जानना बेहद आवश्यक है कि आखिर महाकुंभ का अर्थ क्या होता है कुंभ इस शब्द का अर्थ क्या है ? कुंभ का अर्थ होता है कलश अब इसमें महाकुंभ जोड़ने का अर्थ आप समझ गए होंगे। 12 साल में भारत के चार अलग-अलग शहरों में एक के बाद एक महाकुंभ का आयोजन होता है। उज्जैन,हरिद्वार, नाशिक और प्रयागराज इन चार प्रमुख शहरों में एक के बाद एक इस महाकुंभ का आयोजन होता है। 


3. महाकुंभ शाही स्नान की कथा। 

हिन्दू मान्यता अनुसार महाकुंभ की दो अद्भुत कथाएं वर्णित है जिनमें एक कथा है सर्पो और गरूड़ की कथा। एक महृषि थे जिनका नाम था कश्यप जिनकी दो पत्नियां थी जिनमे एक का नाम था कद्रू और दूसरी का नाम था विनता दोनों ही आपस में बहने थी जिनका विवाह महृषि कश्यप से हुआ था।


कद्रू ने महृषि कश्यप से एक दिन एक वरदान मांगा कि मुझे 100 विषैले बच्चे चाहिए जो बहुत ही शक्तिशाली हो महृषि कश्यप ने कहा तथास्तु और ये वरदान दे दिया। कद्रू को मिले 100 अंडे ये देख विनता को लगा कि मुझे भी वरदान मांगना चाहिए और ये विचार कर वो भी महृषि कश्यप के पास गई और विनता ने कहा मुझे भी आपसे वरदान चाहिए मुझे भले ही बच्चे कम दीजिए मगर मेरे बच्चे कद्रू के बच्चो से अधिक शक्तिशाली होने चाहिए महृषि कश्यप ने कहा तथास्तु और विनता को मिले दो बड़े अंडे। जो 100 अंडे कद्रू को मिले थे उनमे से कुछ अंडे एक एक कर धीरे-धीरे फूटने लगे जिनमे से बच्चे निकलने लगे और वो बच्चे थे सांप। 


पूरी दुनिया में जितने सांप है उन सबकी माता कद्रू को माना जाता है। जब कद्रू के अंडे से बच्चे बाहर निकलने लगे तो विनता का सब्र का बांध टूटने लगा उसे लगा जब कद्रू के बच्चे जन्म लेने लगे तो मेरे अब तक क्यों नहीं हुए जल्दबाजी  विनता ने दो में से एक अंडा खुद अपने हाथो से तोड़ डाला उस अंडे में से जो निकला वो अर्धविकसित शरीर था जो अंडे से बाहर निकला और कुपित हो कर अपनी माता से बोला जो आपने मेरे साथ किया वो दूसरे अंडे के साथ मत कीजिएगा और इतना कह कर वो उड़ गया। जिसे देख विनता को अपनी भूल पर पछतावा हुआ। जब तक गरूड़ बाहर आया तब तक उसकी माँ विनता कद्रू और सौ सांपो की दासी बन चुकी थी ये देख गरूड़ को बड़ा दुःख हुआ, गरूड़ ने सर्पो से कहा मैं ऐसा क्या करू जिससे तुम मेरी माता को मुक्त कर दो तब सर्पो ने कहा तुम वैकुण्ठ धाम से हमे अमृत कलश ला कर दे दो, गरूड़ ने कहा ठीक है मैं कुछ भी कर के आप सबको वो अमृत कलश ला कर दूंगा मगर अमृत कलश पा कर आप सब मेरी माँ को दासित्व से मुक्त कर दोगे उन सर्पो ने कहा ठीक है। 


गरूड़ ने अमृत कलश को वैकुण्ठ धाम से प्राप्त कर लिया जिसे देख सूर्य देव,इंद्र देव सभी ने गरूड़ को रोकने का प्रयास किया मगर गरूड़ इतने शक्तिशाली  उन्होंने सबको परास्त कर दिया फिर ये बात भगवान विष्णु तक जा पहुंची सभी देवो ने कहा अनर्थ हो जाएगा यदि ये अमृत कलश गलत हाथो में लग जाएगा। 


जिसे सुन भगवान विष्णु को क्रोध आया और वो गरूड़ से युद्ध करने लगे, दोनों के बीच काफी देर युद्ध हुआ मगर भगवान विष्णु को ये एहसास हुआ कि गरूड़ के पास अमृत कलश है फिर भी वो अमृत पान नहीं कर रहा, उसने बस अमृत कलश को हाथ में पकड़ रखा है, फिर विष्णु जी  गरूड़ से प्रश्न किया तुम इस अमृत कलश को ले कर कहां जा रहे हो और जब तुम्हारे हाथ में अमृत कलश मौजूद है तो तुमने इसका पान  क्यों नहीं किया मुझे पूरी बात बताओ। तब गरूड़ ने विष्णु जी से सब कुछ बता दिया कि अपनी माँ को सर्पो की दासित्व से मुक्त कराने हेतु  अमृत कलश ले कर जा रहा। 


गरूड़ की बाते सुन कर भगवान विष्णु ने कहा ठीक है तुम इस अमृत कलश को ले कर जा सकते हो मगर मेरी दो शर्त है जब तुम इस अमृत कलश को पृथ्वी पर रखोगे तो उसी वक्त तुम उड़ कर मेरा वाहन बन जाओगे और हमेशा मेरे साथ रहोगे गरूड़ ने इस शर्त को मान लिया जैसे ही गरूड़ उस अमृत कलश को ले जा कर पृथ्वी पर रखे विष्णु जी ने अपनी मायावी शक्तियों से उस अमृत कलश को गायब कर दिया क्योकि उस कलश को गरूड़ ला कर रख चुके थे सर्पो की माता कद्रू और सर्पो के सामने तो उनका वचन पूरा हो चुका था जिस कारण गरूड़ की माता विनता को दासित्व से मुक्त कर दिया गया था दासित्व से विनता मुक्त हुई मगर कलश और अमृत उन्हें नहीं मिल पाया ये है पहली कथा अमृत कलश की जो ये माना जाता है विष्णु और गरूड़ जब युद्ध कर रहे थे तो अमृत कलश से कुछ बूंदे पृथ्वी पर जा गिरी वो चार जगह जहां वो अमृत की बूंदे गिरी वही वो चार जगह है जहां महाकुंभ मेले का आयोजन होता है वो चार जगह है उज्जैन, हरिद्वार, नाशिक और प्रयागराज। 


दूसरी कथा जुड़ी हुई है समुंद्र मंथन से जहां एक तरफ देवता खड़े थे तो दूसरी तरफ असुर कूर्म अवतार में विष्णु जी स्वयं कछुए बने थे जिसके ऊपर पत्थर रख कर सर्प को रस्सी बना कर समुंद्र मथा जा रहा था जिससे अमृत बाहर आ सके। जब अमृत कलश निकला तो देव असुरो से बचाने के लिए उस कलश को ले कर पूरे 12 दिन तक इधर-उधर भागते रहे इन बारह दिनों में चार स्थान पर वो देवता रूके वहां विश्राम किया ये वही चार जगह है जहां पर अमृत कलश को रखा गया हरिद्वार, उज्जैन, नाशिक और प्रयागराज। यही महाकुंभ की प्राचीन दो कथाएं है। 



 

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  1. I really liked this information about the amazing mysterious story of Maha Kumbh. Thank you for providing such a detailed and beautiful story and information.👍

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