दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय का महत्व।

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** जो लोग दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण पाठ नहीं कर पाते यहां ध्यान दे। 



यदि आप सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर पाते तो आप दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ (4) और एकादश (11) अध्याय का पाठ अवश्य करे,क्योकि दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय और एकादश अध्याय का पठन भी साधक को विशेष फल प्रदान करता है।मगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करने से पूर्व सबसे पहले देवी भगवती दुर्गा कवच,अर्गला स्तोत्र और कीलक का पाठ पहले करे क्योकि जब तक आप कवच का पाठ नहीं करते तब तक दुर्गा सप्तशती का पाठ पूर्ण नहीं कहलाता और बिना कवच का पाठ किए जो भी पहले दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करता है उसे उस पाठ का कोई फल प्राप्त नहीं होता और ऐसा करना साधक को विपरीत परिणाम दे सकता है। रोजमर्रा के काम में लोग इतने व्यस्त रहते है उन्हें अपने लिए भी समय निकालना बहुत मुश्किल होता है, ऐसे में कुछ लोगों को इस बात का दुःख रहता है कि वो ईश्वर को उचित प्रकार से समय नहीं दे पाते, ना ही नियमानुसार पूजन अनुष्ठान कर पाते है, ऐसे लोगों के लिए बस इतना ही कहना चाहूंगी कि '' न कर्माधिका पूजा नास्ति, न च कर्मात् अधिकः गुणः, यदि भवता जीवने सर्वदा सत्कर्म अनुसरणं कृतम् तर्हि भवता किमपि चिन्ता न कर्तव्या।।


अर्थात, '' कर्म से बड़ी कोई पूजा नहीं होती, और कर्म से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता यदि तुमने अपने जीवन में सदैव अच्छे कर्मो का पालन किया है तो तुम्हें तनिक भी चिंता नहीं करनी चाहिए। ''


** दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय का महत्व। 


जैसा कि आप सबको पता है कि दुर्गा सप्तशती में कुल तेरह अध्याय है जिनमें सभी अध्याय का अलग-अलग महत्व है, मगर हम अभी दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय की बात कर रहे है जिसके पठन से साधक को एक विशेष फल और शक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य किसी नकारात्मक शक्ति या किसी प्रकार के भय से ग्रसित रहते है उन्हें देवी दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए। इसके पाठ से साधक को हर प्रकार के भय और शोक से मुक्ति मिलती है और उन्हें इस पाठ का विशेष फल भी प्राप्त होता है। 


आपकी कोई मनोकामना है उसे अपने मन में रख कर आप देवी दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय का पाठ आरंभ करे, पाठ आरंभ करने से पूर्व आप अपने हाथ को जल से शुद्ध कर ले और अपने हाथ में अक्षत ( चावल ) पुष्प ( फूल ) और गंगाजल रख ले और पाठ आरंभ करे। पाठ खत्म होने के बाद अपने हाथ में रखे अक्षत और पुष्प को देवी दुर्गा के चरणों में समर्पित कर दे और अपनी मनोकामना अपने मन में पुनः दोहराए। फिर क्षमा याचना कर देवी की आरती करें। 

 

दुर्गा सप्तशती का चतुर्थ और एकादश अध्याय का पाठ काफी प्रभावशाली माना गया है जो साधक को अति शीघ्र फल प्रदान करता है, इसके पाठ करने से साधक सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और उसे खुद में एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव होने लगता है यदि आप किसी भय या चिंता से ग्रसित है, तो आप विश्वास और श्रद्धा के साथ देवी दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ और एकादश अध्याय का पाठ अवश्य करे।

 

याद रहे जब भी आप देवी दुर्गा की पूजा करते है तो आप एक आसन का चुनाव कर ले आप लाल कपड़े से बना आसन का या कुश से बने आसन का ही प्रयोग करे, बिना आसन ग्रहण किए भूल कर भी पूजा में ना बैठे ऐसा करना आपके सभी पुण्य को क्षीण कर सकता है। 


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  1. You have provided very good and rare information about Durga Saptashati which we are very happy to know..👍

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