1. सच्चे प्रेम की ताकत।
सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति होती है, जो असंभव को भी संभव कर देती है, एक वैरागी को भी गृहस्थ बना देती है,एक महासंयासी को भी दाम्पत्य बंधन में बांध देती है।प्रेम कभी खत्म नहीं होता,ना ही प्रेम कभी बदल सकता है, जीवन में सच्चा प्रेम बस एक बार एक ही शख्स से होता है, जैसे ईश्वर का बनाया कानून नहीं बदलता वैसे ही प्रेम का बंधन जुड़ कर कभी नहीं टूटता, क्योकि प्रेम का बंधन एक ऐसा बंधन है जिसमे दो शरीर एक आत्मा का मिलन है,एक दूसरे से ही जिनकी पहचान है, उनके अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात का प्रतिक है, शिव और शक्ति एक दूसरे से भिन्न नहीं, बिना शिव के शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं, सब कहते है शक्ति के बिना शिव भी शव है, मगर वो इस बात से अनभिज्ञ है कि शिव के बगैर शक्ति भी शव है, जो शक्ति समस्त ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करती है, वही शक्ति शिव के बिना शक्तिहीन है, क्योकि शक्ति का प्रमुख ऊर्जा स्तोत्र शिव है।
2. क्या वाकई सच्चा प्यार बिछड़ कर भी पुनः मिल जाता है ?
शक्ति को अस्तित्व में लाया जिसने वो शिव है, शक्ति को अपने स्वरूप से अवगत कराया जिसने वो शिव है,भूली बिसरि स्मृतियों को पुनः स्मरण कराया जिसने वो शिव का प्रेम है,हर जन्म साथ निभाया जिसने वो शिव है,भगवान हो कर भी जिसने उसके प्रेम को महत्व दिया, सती ने जब पुनः जन्म लिया मनुष्य हो कर भी कहलायी वो महादेव की अर्धांगनी, चाहे कितने भी जन्म लिया सती ने शिव की ही बनी वो अर्धांगनी, कुछ तो खास होगा दोनों के प्रेम में जो मिल जाते है बिछड़ कर भी हर युग में, है ये त्याग और समर्पण की दर्द भरी कहानी, जिसे विश्वास था कभी अधूरी नहीं रहेगी हमारी प्रेम कहानी, आखिर नियति ने मिला ही दिया पुनः दोनों को, क्योकि उन्हें था विश्वास कि एक ना एक दिन नियति मिलाएगी हम दोनों को।
ना जाने क्यों लोग कहते है इस कलयुग में सच्चा प्रेम रहा नहीं, जो उम्र भर साथ निभाए ऐसा उन्हें कोई मिला नहीं।यदि प्रेम में सम्मान हो, यदि प्रेम में समर्पण की भावना हो, यदि प्रेम में विश्वास हो, फिर वो प्रेम एक साधारण प्रेम नहीं रहता।
कौन कहता है कि प्रेम में बस दुख,दर्द और तकलीफ के सिवा कुछ नहीं ? प्रेम एक तप है, एक पूजा है, जिसमे हर आग,हर तूफान और हर दर्द तकलीफ से हो कर ही ये प्रेम पूर्ण होता है, जिसके दिल में अपने प्रेम के लिए विश्वास और सम्मान होता है उसी का प्रेम अटूट और पवित्र होता है।