इस दुनिया में लोग कहते है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान है,जिसे सभी वेद,ग्रन्थ,पुराणों का ज्ञान है,वही विद्वान है।
मैं आज अपने इस लेख में इसी विषय पर चर्चा करूंगी। ऐसे तो आप में से कुछ मनुष्य ने रामायण, भागवत गीता, महापुराण, ग्रन्थ और शास्त्र का अध्यन किया होगा, मगर किसी धार्मिक पुस्तक,शास्त्र को पढ़ने मात्र से हर व्यक्ति आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवृति का नहीं हो जाता,क्योकि किसी विषय को रटना और पढ़ना तभी सार्थक सिद्ध होता है जब उस विषय को अपने दिमाग में याद रखा जाए और विषय से ज्ञान प्राप्त किया जाए अन्यथा रटने और पढ़ने से क्या लाभ ?
अपने जीवन में एक बात अवश्य याद रखना कभी अपने अर्जित ज्ञान पर भूल कर भी अभिमान ना करना,क्योकि एक अभिमानी का ज्ञान से कोई वास्ता नहीं। यदि तुम्हारे ज्ञान से किसी का अहित हो रहा है तो ये समझ लेना तुम्हारा ज्ञान एक अभिशाप बन रहा है,क्योकि ज्ञान तभी फलित होता है जब अपने ज्ञान से हम दूसरो की सहायता करते है,अपने अर्जित ज्ञान को दूसरो के साथ बांटते है।
वरना शास्त्रों का ज्ञान,वेदों का ज्ञान,ग्रंथों का ज्ञान सब व्यर्थ है ''जब तक तुम्हे अपने उचित कर्तव्यों की अनुभूति नहीं होती।
1.ईश्वर के दृष्टिकोण से विद्वान कौन कहलाता है ?
विद्वान वो कहलाता है,जिसे अपने ज्ञान पर कोई अभिमान नहीं होता, विद्वान वो कहलाता है जो दूसरो के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझ कर उसकी मदद के लिए तत्पर रहता है, विद्वान वो कहलाता है जो किसी से द्वेष भाव नहीं रखता, विद्वान वो कहलाता है जिसे धन,दौलत,पैसा मोहित नहीं करता, विद्वान वो कहलाता है जो खुद को सबसे श्रेष्ठ नहीं समझता।जिसकी नजरो में अमीर,गरीब सब एक समान होते है,जो किसी में भेदभाव नहीं रखता, जो अन्याय पर रोक लगाता,जो न्याय के लिए आवाज उठाता, जो सदैव अपने उचित धर्म और कर्म का पालन करता है,वही विद्वान कहलाने का ख्याति पाता है।
आप खुद देखो कितने ऐसे पंडित,पुरोहित है जो धर्म और ईश्वर के नाम पर लोगो को सही दिशा से भ्र्ष्ट करने का प्रयास कर रहे है। क्या फायदा शास्त्रों के ज्ञान का,अनुष्ठान और पूजा पाठ का ?
यदि तुम किसी को सही दिशा नहीं दिखा सकते तो तुम्हे कोई हक नहीं दूसरो को दिशा से भ्र्ष्ट करने का, जिस पवित्र ज्ञान को तुमने अर्जित किया तुम उसी ज्ञान का व्यापार कर रहे हो, यदि ऐसा है तो ये मान लेना तुम पवित्र ज्ञान से अनजान हो, तुम बस नाम के विद्वान हो,यदि तुम्हारी विद्या तुम्हे उचित और अनुचित क्या है इसका बोध नहीं कराती तो ये मान लेना तुमने विद्या को उचित प्रकार ग्रहण किया ही नहीं।
चाहे कितनी बड़ी डिग्रियां हासिल कर लो,शास्त्रों के ज्ञाता बन जाओ मगर यदि तुम्हारे भीतर स्वार्थ, अभिमान,लोभ, ईर्ष्या,क्रोध, प्रतिस्पर्धा है तो मान लेना,तुम असल ज्ञान से कोशो दूर हो।
* ज्ञानं दिव्यत्वस्य प्रतीकं ज्ञानं प्रकाशं यत् अस्माकं अन्तः अज्ञानस्य अन्धकारं दूरीकृत्य ज्ञानप्रकाशेन अस्मान् प्रकाशयति।
अर्थात, ज्ञान दिव्यता का प्रतीक है,ज्ञान एक ऐसा प्रकाश है जो हमारे भीतर अज्ञान के अंधकार को दूर करता है और ज्ञान के प्रकाश से हमे प्रकाशित करता है।
2. वास्तविक विद्वान के गुण।
विद्वान होने की उपाधि एकमात्र पुस्तक के ज्ञान से,वेदों,शास्त्रो और ग्रंथों के अध्यन से प्राप्त नहीं होती बल्कि दिल,मन और आत्मा के शुद्धिकरण से प्राप्त होती है, तीर्थ धाम,गंगा स्नान से तन और मन पवित्र नहीं होता, ये सब तो तुम अपने मन के तसल्ली के लिए करते हो, यदि सभी दोषो से,बुरे विकारो से तुम स्वयं को मुक्त कर लोगे तो तुम्हे तीर्थ और गंगा स्नान की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।