संभव और असंभव की इस दुविधा से बाहर आए।

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1. संभव और असंभव की इस दुविधा से बाहर कैसे आए ?


 दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं ऐसा कहना आप सबकी भावनाओं के साथ खेलना होगा क्योकि यदि सब कुछ संभव होता तो इंसान आकाश और धरती की दूरी को मिटा पाने में सफल होता, यदि सब कुछ संभव होता तो इंसान किसी की मृत्यु को रोक पाने में सफल होता, यदि सब कुछ संभव होता तो इंसान ईश्वर को अपने समक्ष देख पाने में सफल होता, यदि सब कुछ संभव होता तो मनुष्य समुंद्र की गहराई का पता लगा पाने में सफल होता। ये सब कुछ केवल ईश्वर के लिए संभव है किसी इंसान के लिए नहीं।मगर जो आपके लिए संभव है आप उसे यदि अपनी सोच के कारण असंभव बनाने का प्रयास करोगे तो यकीनन वो कभी संभव नहीं हो सकता क्योकि जब आप किसी कार्य को कठिन समझने लगते हो तो वो कार्य आपको कठिन ही प्रतीत होने लगता है और आपका उस कार्य में दिल नहीं लगता आप यही सोचते हो कि ये मुझसे नहीं होगा खामखा मैं अपना समय क्यों बर्बाद करूं। 


2. यदि अपने सपने को सच करना चाहते हो तो जीवन में कभी खुद को किसी से कम आंकने की भूल न करना। 


उदाहरणस्वरूप जैसे मान लो आप आईएएस ( IAS ) बनना चाहते हो मगर कुछ लोग आपको कहते है आईएएस बनना इतना आसान नहीं बहुत लोग प्रयास करते है मगर सफलता सबको नहीं मिल पाती यदि उनके कहने से उनके कथन को आप सत्य समझने की भूल करते हो तो आप कभी सफल नहीं हो सकते क्योकि सफल वही होते है जिन्हें खुद पर विश्वास होता है, जिनके हौसलों में जान होती है, जो अपनी मेहनत पर यकीन रखते है वही अपने सपनों को सच कर दिखाते है।

  

3. सच्चे दिल से किया गया प्रयास कभी निराश नहीं कर सकता। 


कभी-कभी हम अपनी मंजिल के करीब आ कर भी अपनी एक छोटी सी भूल और अज्ञानतावश उसे खो देते है। इसलिए आप खुद की कभी दूसरो से तुलना भूल कर भी ना करे, क्योकि हर इंसान की सोच, उसकी किस्मत एक जैसी नहीं हो सकती। जब हम पूरे दिल से प्रयास करते है तो हमारा प्रयास हमें कभी असफल या निराश नहीं कर सकता क्योकि मनुष्य यदि सच्चे दिल से ईश्वर से कुछ मांगता तो ईश्वर उसे कभी निराश नहीं करते फिर भी हमे सब कुछ ईश्वर के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए जो हमारा कर्म है हमें अपने उस कर्म का सदैव पालन करना चाहिए क्योकि कर्म करना हमारे वश में और कर्म का फल देना ईश्वर के हाथ में और जो इंसान अपने सही कर्म को नहीं भूलता ईश्वर भी उसे नहीं भूलते और ना ही ईश्वर उसका कर्मफल देना भूलते है। 


यदि वयं असम्भवं सम्भवं कर्तुम् इच्छामः तर्हि प्रथमं अस्माकं दुविधाभ्यः बहिः गन्तव्यं, कार्यं विना कोऽपि किमपि न प्राप्नोति, कार्येण असम्भवं सम्भवं भवति, ईश्वरः अपि कार्यद्वारा प्राप्तुं शक्यते।


अर्थात, हर असंभव को यदि संभव बनाना है तो सर्वप्रथम दुविधाओं से बाहर आए ,बिना कर्म किये किसी को कुछ नहीं मिलता, कर्म ही हर असंभव को संभव बनाता है,कर्म से ही ईश्वर को भी पाया जा सकता है। 


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2Comments


  1. With strong determination and hard work, the impossible becomes possible, so believe in yourself and you will definitely achieve success. Very lovely and inspiring article by you. 👍

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