माँ की महिमा।

World Of Winner
3 minute read
2

माँ जिससे ये समस्त संसार है, माँ जिससे हम सबका अस्तित्व है, माँ जो जीवनदायिनी कहलाती है उस माँ की महिमा की बात ही निराली है। कैसे बयां करू मैं माँ की महिमा की, शब्द भी कम पड़ जाएंगे उसकी महिमा के गुणगान की।



 आज थोड़ी सी बात कड़वी लग सकती है उनको जिन्हें माँ की ममता की कद्र नहीं मगर माँ के बिना होता ना पालन पोषण किसी का जिन्हें आज माँ की मंमता का एहसास नहीं उसकी कीमत और अहमियत का पता नहीं। आज यदि बाजार में निकलोगे तो धन और पैसो से तुम्हें जरूरत के कुछ सामान अवश्य मिल जाएंगे मगर यदि बिना धन और बिना दौलत के कुछ मिल सकता है तो वो है माँ की सच्ची मोहब्बत जिसका कोई मोल नहीं जो बेहद अनमोल है। 



**1. कैसे भूल गए तुम माँ का बलिदान ?


वो बचपन जब माँ का आंचल पकड़ कर उनके साथ-साथ चलना एक पल भी यदि माँ आंखो से ओझल होती तो घबरा जाना कहीं माँ हमे छोड़ कर कहीं चली तो नहीं गई वो बचपन था जब माँ की अहमियत एक बच्चे को बखूबी पता होती थी मगर बचपन में तो इतनी समझ नहीं होती किसी में फिर भी सोचो ये ईश्वर की महिमा नहीं तो और क्या है जो एक नासमझ बालक भी अपनी माँ की आहट और माँ की अहमियत बखूबी समझता है और जानता है, मगर बड़े हो कर वही बालक जब युवा अवस्था में पहुंच जाता है तो अपनी माँ की अहमियत को भुला देता है अपनी माँ की आहट सुन कर उससे नजरे फेर लेता है अपनी माँ की कद्र भूल जाता है। 


**2. क्या तुम माँ की पीड़ा से अवगत हो ?


जब आपको थोड़ा दर्द होता है तो आप बेचैन होने लगते है, तुरंत औषधि या उपचार करने लग जाते है कभी आपने ये विचार किया है कि कैसे एक माँ नौ महीने अपनी कोख में अपनी संतान को आश्रय प्रदान करती है, उस माँ को कितनी पीड़ा और कष्ट प्राप्त होते है उस प्रसव की पीड़ा को कैसे सहन कर एक माँ अपनी संतान को एक नया जीवन प्रदान करती है ? 


**3. क्या है माँ की महिमा ?


आप स्वयं विचार करो, खास कर मैं उन लोगो से ये सवाल करूंगी जो अपनी माँ को बुढ़ापे में बोझ समझने की भूल करते है, उस संतान से मैं सवाल करना चाहूंगी जो संतान अपनी माँ को घर से बाहर निकाल देते है उन्हें दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर करते है मैं उस संतान से यही सवाल करना चाहूंगी जिस माँ ने तुम्हें नौ महीने तक अपनी कोख में स्थान दिया क्या ये उसी उपकार का परिणाम तुम अपनी माँ को दे रहे हो ? क्यों तुमने नहीं पहचाना उस माँ की महिमा को वो माँ कोई साधारण स्त्री नहीं वो माँ उस ईश्वर का ही स्वरूप है जिसकी पहचान तुम नहीं कर सके बड़े अफसोस के साथ ये कहना पड़ रहा कि तुम ईश्वर की नजरों में हमेशा के लिए गिर गए। 


याद करो वो बचपन जब माँ तुम्हें बिना खिलाए बिना सुलाए ना चैन से खाती थी ना चैन से सोती थी, वो माँ ही थी जो लड़खड़ाने पर तुम्हारा हाथ थाम कर तुम्हें चलना सिखाती थी, वो माँ ही थी जो खुद गीले स्थान पर सो कर तुम्हें सूखे स्थान पर सुलाया करती थी, वो माँ ही थी जो नींद में भी तुम्हारे रोने की आवाज सुन कर फौरन उठ कर तुम्हें चुप कराया करती थी।  


आज इस कलयुग में जो माँ की ममता को नहीं समझता, जो माँ की वास्तविक महिमा से बेखबर है ये मान लेना कि ईश्वर की वास्तविक परिचय से वो दूर है।माँ ये कहने को एक छोटा सा शब्द है मगर इस शब्द की महिमा अपरंपार है। 






Post a Comment

2Comments


  1. Truly mother is the embodiment of God,The glory of mother is unique. Very nice article. 👍

    ReplyDelete
Post a Comment

#buttons=(Accepted !)

Our Website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accepted !