कर्म हमारे प्रत्येक जन्म से जुड़ा है।

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 क्या है संबंध कर्मो का हमारे प्रत्येक जन्म से और क्यों हमारा कर्म हमारी परछाई बन कर सदैव हमारे साथ चलता है ? आज आप हमारे लेख में इस अद्भुत रहस्य को जानेगे। चाहे ईश्वर हो,मनुष्य हो या कोई पशु पक्षी सभी अपने-अपने कर्म करते है, क्योकि ये हमारा कर्तव्य है,जिससे कोई भी मुख नहीं मोड़ सकता। 




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मगर आज इस दुनिया में कुछ मनुष्य अपने उचित कर्मो का पालन करना भूल चुके है। एक छोटा बालक नासमझी में यदि कोई गलत कार्य करता है तो उसमे उस बालक का दोष नहीं होता उसकी बुद्धि का दोष होता है, क्योकि उस बालक को सही और गलत का भेद ही नहीं तो अनजाने में वो बालक भूल कर बैठता है, मगर यदि कोई पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति यदि जानबूझ कर कोई गलत कार्य करता है तो इसे आप नासमझी नहीं कहेगे बल्कि जानबूझ कर किया जाने वाला अपराध कहेगे। 


1. क्या है कर्म बंधन?


अब जो मैं बताने जा रही हूँ उस बात पर गौर करना यदि तुम्हे ऐसा लग रहा है कि जो भी सजा मिलता है वो इसी जन्म में और यही पृथ्वी पर ही मिलता है,मृत्युपरांत नहीं तो ये तुम्हारी भूल है, क्योकि यदि तुमने इस जन्म में अपनी गलती को नहीं स्वीकारा और उस गलती को नहीं सुधारा तो तुम्हे फिर से जन्म ले कर इस जन्म मृत्यु के चक्र से हो कर गुजरना पड़ता है।यही पर तुम्हारी सजा समाप्त नहीं होती बल्कि जब तुम्हारी मृत्यु होती है तुम्हारी आत्मा ईश्वर के पास ले जाई जाती जहां तुमसे तुम्हारे प्रत्येक कर्मो का हिसाब लिया जाता है, उसके पश्चात तुम्हे वहां से मुक्त किया जाता है ताकि तुम अपनी भूल को सुधारो, जो पूर्व जन्म में तुमने भूल या अपराध किया उन सबका तुम भुगतान कर सको इस कारण तुम्हे नया शरीर और नया जीवन प्रदान किया जाता है। 


2. क्या पूर्व जन्म के कर्म इस जन्म से जुड़े होते है ?


पूर्व जन्म में तुमने जितने बुरे कर्म किए उन सबका फल तुम्हे अपने दूसरे जन्म में प्राप्त होता है, यदि इतना कुछ घटित होने के बावजूद भी तुम अपने कर्म को नहीं सुधारते बुरे कर्म और पाप में लिप्त रहते हो तो तुम्हे असहनीय कष्ट दिया जाता है, वो असहनीय कष्ट ये है कि जो तुम्हे अति प्रिय है तुमसे उसे दूर कर दिया जाता है, सब कुछ होने के बाद भी तुम्हे कभी किसी का सच्चा प्यार और साथ प्राप्त नहीं होता। मृत्यु के बाद भी तुम्हे अनेको कष्ट दिया जाता है।


 क्योकि क्षणिक सुख के लिए तुमने किसी अन्य को दुख पहुंचाया,अपने स्वार्थ के लिए तुमने दूसरो को सताया उनसे उनकी खुशियां छीनी, अपने माता-पिता बड़े बुजुर्गो का सदैव तिरस्कार किया, अपने जीवनसाथी के साथ भी छल किया तो तुम्हे सुख और शांति का अनुभव कैसे प्राप्त हो सकता है ?


जैसे स्कूल में छात्र कोई होमवर्क सही तरीके से पूरा नहीं करते तो शिक्षक उन्हें दंडित करते है ताकि उस छात्र में सुधार आ सके और उसकी पढ़ाई और उसका ज्ञान बेहतर दिशा पा सके। इसमें उस शिक्षक का कोई स्वार्थ नहीं होता, क्योकि यदि छात्र अपनी शिक्षा में कामयाब होगा तो उसे बेहतर भविष्य की प्राप्ति होगी, यही वजह है जो शिक्षक थोड़े शख्त होते है। ताकि छात्र भयभीत हो सके और अपनी शिक्षा को उचित प्रकार ग्रहण कर सके जिससे उसका जीवन बेहतर दिशा की ओर बढ़ सके। 


यही वजह है जो ईश्वर कभी अपना कठोर स्वरूप  तो कभी सौम्य स्वरूप  धारण करते है। कठोर स्वरूप  दुष्टो के लिए तथा सौम्य स्वरूप अच्छे भक्तजन और संतान के लिए। 


3. कर्म हमारे प्रत्येक जन्म से जुड़ा है। 


जब कर्म से स्वयं भगवान भी मुख नहीं मोड़ सकते तो तुम मनुष्य कैसे कर्म से अपना पीछा छुड़ा सकते हो ? अच्छे बुरे कर्म का चुनाव तुमने स्वयं किया है तो उसका फल भी तुम्हे ही प्राप्त होगा। यदि तुमने अपने लिए तीखे और कड़वे भोजन को पकाया है तो इसे तुम्हे ही ग्रहण करना होगा, यदि तुम्हे उचित प्रकार भोजन पकाने आता तो आज तुम अच्छा स्वादिष्ट भोजन पकाते मगर तुमने कभी इस कला को सीखने का प्रयास किया ही नहीं, अर्थात तुमने अच्छे कर्मो को कभी स्वीकारा ही नहीं,सदैव बुरे कर्म को ही जाना और उसका पालन किया तो इस कर्म का संबंध तुमसे नहीं होगा तो फिर किस से होगा ?


तुम्हारे नाम से पूर्व,तुम्हारा कर्म तुम्हारी पहचान करवाता है, अब कर्म के बारे में अधिक क्या कहूं मरने के बाद तुम्हारा शरीर और यहां तक तुम्हारे अपनों का भी साथ छूट जाता है, मगर कर्म का ऐसा अनोखा संबंध है, जो तुम्हारे मरने के बाद भी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ता है।  



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