(toc) #title=(Table Of Content)
1. पतन का द्वार।
अत्यधिक अहंकार,अत्यधिक लोभ,अत्यधिक क्रोध, ये तीनों विकार मनुष्य के पतन का मार्ग कहलाता है। जब कोई मनुष्य पद हासिल करता है, जब किसी मनुष्य के पास अत्यधिक धन दौलत और पैसा हो जाता है, तो उसमें स्वतः ही अहंकार प्रस्फुटित होने लगता है जिस अहंकार में अंधा हो कर वो दूसरे मनुष्य को स्वयं से छोटा और हीन समझने लगता है यही शुरुआत होती है, उस अहंकारी के पतन के पहले चरण की।
ना जाने क्यों मनुष्य में इतना अहंकार और लोभ आ जाता है, जबकि ये बात सबको पता है कि अहंकार और लोभ में आ कर जिस किसी ने भी किसी का अहित करने प्रयास किया है उसे सिवाय पराजय के कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, ना ही हो सकता है, जब कोई देवता ऋषि महृषि इससे सुरक्षित नहीं रह पाए तो फिर तुम मनुष्य क्या हो ? जो तुम मनुष्य हो कर स्वयं को भगवान समझने की भूल मूर्खता की है और अपने लोभ और अहंकार में आ कर ना जाने कितने लोगों का अपमान और अहित करने का जघन पाप किया है।
2. ऐसे विचार जो बनाते है तुम्हें ईश्वर के कोप का भाजन।
इस बदलते युग में मनुष्य इतना बदल गया है कि वो किसी को सम्मान भी उसकी हैसियत और रूतबे को देख कर देता है, यदि कोई गरीब है तो उसे तुच्छ समझा जाता है,चाहे वो कितना भी अच्छा हो,नेक दिल इंसान हो उसके गुणों से किसी को मतलब नहीं बल्कि सबको उसकी हैसियत और रूतबे से मतलब होता है।ऐसी सोच और विचारधारा रखने वाले लोगों से आज एक बात अवश्य कहना चाहूंगी कि '' मत भूलो की तुम भी एक साधारण मनुष्य हो और जो गरीब इंसान है वो भी एक मनुष्य ही है,ना ही तुम में कोई भेद है और ना ही उसमे कोई भेद है, ना तो तुम अमर हो, ना तो वो अमर है मगर एक फर्क तुम में और उसमे अवश्य है वो है इंसानियत, उस गरीब का दिल तुम्हारे दिल से कहीं बड़ा और साफ है,उसमे इंसानियत का वास है, यही फर्क है तुम में और उस गरीब इंसान में जो उस गरीब को साधारण होते हुए भी ईश्वर की नजरों में असाधारण होने का दर्जा दिलाती है,और तुम्हे ईश्वर की नजरों से गिराती है,साथ ही साथ तुम्हे ईश्वर के कोप का भाजन भी बनाती है।
आज इस कलयुग में यदि भगवान का कोई अवतार भी मनुष्य बन कर किसी के समक्ष आ जाए तो अहंकारी और लोभी मनुष्य ईश्वर का भी अपमान करने से पीछे नहीं हटेंगे, आज पैसे ने तुम्हे इतना अंधा बना दिया कि अपने नेत्रो और अपनी बुद्धिमता को भी तुमने गवा दिया, क्या फायदा इन नेत्रों का जो तुम्हे सत्य का परिचय ना करा सके ? क्या फायदा तुम्हारे मस्तिष्क का जो तुम्हारी बुद्धिमता को नष्ट कर दे ? क्या फायदा तुम्हारे मनुष्य होने का जो तुम्हे पशुतुल्य व्यवहार करने पर विवश कर दे ?