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1. अनुष्ठान,पूजन,उपवास आदि भी तुम्हारे काम क्यों नहीं आते?
कभी-कभी तुम्हारे अनुष्ठान,पूजन,उपवास आदि भी तुम्हारे काम नहीं आते,फिर तुम ईश्वर की अनुकंपा और उनकी दया पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगते हो,मगर इसके पीछे का मुख्य कारण क्या है ?
जैसा कि आप सब जानते है,मंदिर और धार्मिक स्थल पर वही जा सकता है जो स्नान आदि से स्वयं को शुद्ध और पवित्र करते है,क्या कोई मांसाहारी भोजन कर मंदिर में प्रवेश कर सकता है ? ये अत्यंत घोर निरादर और पाप कहलाएगा यदि किसी ने भगवान को अपवित्र हाथो से स्पर्श करने का प्रयास किया। जब आप अनुष्ठान और पूजा करते है तो अपने घर को धो कर उसे गंगाजल से पवित्र करते है तथा स्वयं भी स्नान से निवृत हो कर पूजा में बैठते है।
मान लो आपके घर में ही आपके परिवार का कोई सदस्य मांसाहार भोजन पका रहा जिस वक्त आप पूजा में बैठे है,तो क्या आपकी पूजा सफल हो सकती है,क्या आपका ध्यान भंग नहीं होगा ? क्योकि आपके ही घर में आपके घर का ही सदस्य आपकी पूजा में आपका बाधक बनने का प्रयास कर रहा है,मगर आप बिना कुछ कहे अपना पूजा अनुष्ठान का कार्य संपन्न कर आए।
मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि ये समस्त संसार और यहां निवास करने वाले सभी प्राणी एक दूसरे से भिन्न नहीं आप एक परिवार ही है,मगर इस परिवार में एक सदस्य है जो शुद्ध शाकाहारी भोजन करता है,दिन रात ईश्वर की भक्ति करता है,मगर दूसरा सदस्य मांसाहारी भोजन करता है,दिन रात बस बुरे कर्मो में लिप्त रहता है,तो क्या उस सदस्य की भूल का भुगतान आप नहीं करेंगे ? क्योकि ये सब कुकर्म आपके ही घर में हो रहा है जिसका प्रभाव कहीं ना कहीं आप पर भी पड़ रहा है,क्योकि आपने उसे ऐसा करने से एक बार भी नहीं रोका ना ही समझाने का प्रयास किया।
यदि आप मेरी बात समझ नहीं पा रहे है तो मैं सरल शब्दों में समझाती हूँ, यदि इस धरा पर आरंभ में भी हर मनुष्य एक दूसरे के लिए अच्छे विचार और व्यवहार का उपयोग करते तो आज इस संसार में कोई एक दूसरे का शत्रु नहीं होता,ना ही किसी को किसी से खतरा होता बल्कि सब एक दूसरे की रक्षक होते भक्षक नहीं।
माता-पिता के चार संतान है,यदि उनका एक संतान दूसरी संतान के जान का दुश्मन बनने का प्रयास करेगा तो कैसे माता-पिता अपनी उस संतान को क्षमा कर सकते है ? यदि एक संतान उनकी दूसरी संतान के खाने का निवाला छीनने का प्रयास करे और माता-पिता को सुंदर स्वादिष्ट पकवान भेट करे तो कैसे माता-पिता उस संतान की भेट को स्वीकार कर सकते है भला ? आज इस धरा पर समस्त संसार पर जो अंधकार छाया हुआ है,उसे कोई समझने का प्रयास नहीं कर रहा है,बल्कि बस पूजा-पाठ अनुष्ठान और मन्त्र आदि का जाप कर ईश्वर को खुश करने का प्रयास करते है, जो सबसे मुख्य है जो सबसे अहम बात है लोग उसे ही समझने का प्रयास नहीं कर रहे है।
अब जो मैं बताने जा रही हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुने कलयुग में यदि आपको सदैव ईश्वर की सुरक्षा कवच और सानिध्य में रहना है तो आपको एक खास बात पर ध्यान देना होगा।
''यदि आप एक माता-पिता है, यदि आप अपने घर के सदस्यों में सबसे बड़े है तो सर्वप्रथम अपने घर के प्रत्येक सदस्यों की क्रियाकलाप पर ध्यान दे यदि आपके घर के बच्चे या कोई भी सदस्य किसी गलत आदतों को या व्यवहार को अपनाता है तो उसे उसी वक्त रोके उनका उचित मार्गदर्शन करे क्योकि आपका एक प्रयास कई जिंदगियों को बर्बाद होने से बचा सकता है।
एक अधर्मी ही कई अधर्मियों को जन्म देता है, यदि एक धर्मपरायण अपने धर्म पर अडिग रहे तो वो कितने धर्मपरायण को संगठित कर संसार को बर्बाद होने से बचा सकता है।
2. कलयुग का रहस्यमयी कवच।
इस कलयुग में ना ही मन्त्र काम आते है,ना ही पूजा पाठ यदि कुछ काम आता है, तो वो है तुम्हारा व्यवहार,संस्कार,कर्म और धर्म। यदि कलयुग के कुचक्र से स्वयं को सुरक्षित रखना चाहते हो तो सबसे पहले अपने व्यवहारों को सुधारने का प्रयास करो, उचित संस्कार का पालन करो,अपने कर्म को सुधारने का प्रयास करो,तथा सदैव धर्म के मार्ग का चयन करो। क्योकि कलयुग में यही तुम्हारी ढ़ाल बनेगे और यही तुम्हारा कवच बनेगे।जैसे दवा भी मरीज के तभी काम आती है,जब मरीज अपने उचित खान-पान का ध्यान रखता है,ठीक वैसे कोई भी पूजा-पाठ ध्यान और मन्त्र आदि तभी अपना प्रभाव दिखाता हैं, और तभी काम आता है जब मनुष्य अच्छे कर्मो का चुनाव कर अपने जीवन में सदैव धर्म के मार्ग का अनुसरण करता है।यदि तुम्हारे कर्म सही है,यदि तुम्हारा दिल छल कपट से मुक्त है, यदि तुम्हारा व्यवहार सबके प्रति उदार है,यदि तुम्हारे अंदर उचित संस्कार है तो तुम्हारे यही गुण कलयुग में तुम्हारा प्रभावशाली सुरक्षा कवच बन कर हर मुसीबत से तुम्हे आगाह कर तुम्हारी रक्षा करेगा और समय-समय पर तुम्हारा सही मार्गदर्शन करेगा।
ये कोई किताबी बाते नहीं ये अटल सत्य है, जिससे आज मैंने इस समस्त संसार को अवगत कराया है,इसे स्वीकार करना, ना करना आप सब के हाथ में है।