मन का शुद्धिकरण।

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1. सकारात्मक ऊर्जा कैसे प्राप्त होती है ?


शुद्धता कौन नहीं चाहता ? भोजन,जल,मंदिर,घर इन सबका स्वच्छ और शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है,क्योकि जहां पवित्रता नहीं वहां सकारात्मकता नहीं आ सकती।जहां शुद्धता नहीं वहां केवल नकारात्मकता ही प्रवेश कर सकती है।अर्थात शुद्धता और पवित्रता इन दोनों के मेल से ही मानव सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। 


आज संसार को मैं जिस अहम बात से वाकिफ कराने जा रही हूँ वो समस्त संसार के समक्ष उजागर करना अत्यंत आवश्यक है, वरना आने वाले समय में इस सत्य को यदि किसी ने नहीं माना तो उनका जीवन संकट में पड़ सकता है,जिसकी वजह वो स्वयं होंगे,इसलिए मेरी बातो को नजरअंदाज करने की भूल ना करे। 


2. क्यों है आवश्यक मन का शुद्धिकरण ?


घर भी स्वच्छ कर लिया तुमने,मंदिर भी धो कर पवित्र कर डाला तुमने,स्वयं भी स्नान से निवित्र हो कर खुद को पवित्र कर लिया तुमने,मगर जिसे सबसे अहम था शुद्ध और पवित्र करना उसे ही अपने बुरे विचारो से मैला और अशुद्ध कर डाला तुमने,फिर क्या फायदा तुम्हारे घर और मंदिर की सफाई का जब अपने मन में बसे भगवान को अपने बुरे विचारो से अपवित्र कर डाला तुमने। 


शायद मेरी बाते कुछ युवा नहीं समझ पा रहे है,मैं अपनी बातो को सरल शब्दों में समझाने का प्रयास करती हूँ, मेरे कहने का अर्थ है, मान लो तुम अपने घर के चारो ओर साफ-सफाई कर डाले,अपने मंदिर को भी धो डाले मगर जो तुम्हारा कमरा है जहां तुम दिन रात अपना समय बिताते हो तुमने अपने कमरे को ही साफ नहीं किया तो उस कमरे की गंदगी तुम्हारे पूरे घर को साथ ही साथ तुम्हारे घर के मंदिर को भी तो अपवित्र करेगी क्योकि तुम्हारा कमरा तुम्हारे घर के भीतर है,घर के बाहर नहीं तो सबसे पहले तुम्हे अपने कमरे की सफाई करना आवश्यक था जिसे तुम साफ करना भूल गए फिर क्या फायदा तुम्हारी इतनी मेहनत का ? 


अर्थात तुम्हारा मन जो एक खाली कमरा है,जिसमे अनेको अच्छे -बुरे विचार आते जाते रहते है,कभी तुम्हारे मन में किसी के प्रति नफरत की भावना उत्पन्न होती है, कभी ईर्ष्या, अहंकार, लालच,स्वार्थ जैसे बुरे विकार तुम्हारे मन को दूषित करने का प्रयास करते है,तुम उसी अशुद्ध मन में ईश्वर का भी स्मरण लाते हो जिससे तुम ईश्वर को भी अपवित्र करने का पाप करते हो,फिर तुम लाख घर की सफाई कर लो, मंदिर की सफाई कर लो,किसी पवित्र नदी या जल से स्नान कर लो तुम कभी शुद्ध और पवित्र नहीं हो सकते। 


आज इस धरा पर अनेको मनुष्य इसी विचारधारा में जी रहे है कि एकमात्र घर और मंदिर को पवित्र कर लिया,स्वयं को गंगाजल से पवित्र कर लिया तो हमारा शुद्धिकरण हो गया,ये एक विडंबना है, तुम्हारी भूल है,तुम्हारी मूर्खता है। 


यदि आज मेरे शब्द किसी को कठोर लग रहे,तो मैं क्षमा चाहती हूँ मगर सत्य को कोई झुठला नहीं सकता ना ही सत्य को कोई भयभीत कर सकता है,मैने जो भी कहा सत्य कहा और सदैव इस सत्य को कहती रहूंगी क्योकि मुझे संसार की फिक्र है, क्योकि हम सब इस संसार से अलग नहीं, इसलिए सो रहे संसार को जगाना तथा सभी मनुष्यो को जागरूक करना मेरा दायित्व और मेरा फर्ज है,अभी भी समय है उलझन से बाहर आने का अपने मन के शुद्धिकरण की प्रक्रिया को अपनाने का अन्यथा यदि विलंब हो गया तो तुम्हे सिवाय ग्लानि के कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। 


बुरे विचारो से ही बुरे व्यवहार का जन्म होता है,बुरे व्यवहार से ही मनुष्य किसी मनुष्य का शत्रु बनता है, शत्रुता से ही मनुष्य किसी का अहित कर डालता है,इस तरह मनुष्य अपने बुरे कर्मो द्वारा अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेता है,ना ही उसे किसी का प्यार हासिल होता है,ना ही किसी का सम्मान, क्योकि बुरे विचार जो तुम्हारे मन को मैला कर रहा तुम्हारा असल शत्रु तुम्हारे मन के भीतर ही पल रहा यदि अपने शत्रु से विजय प्राप्त करना चाहते हो यदि अपने शत्रु को पराजित करना चाहते हो तो सर्वप्रथम अपने मन को शुद्ध और पवित्र करो,अच्छे विचारो को अपने मन में बसा कर अच्छे कर्मो का चुनाव करो,अपने मैले अपवित्र मन को अच्छे विचारो से पवित्र कर धो डालो फिर देखो तुम्हारा जीवन कैसे उन्नति और कामयाबी के शिखर को छूता है। क्योकि पवित्र और शुद्ध मन में ही ईश्वर का वास होता है,जो हर नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर तुम्हे विजयी बनाता है। 


आज के लिए इतना ही यदि मैं गहन विस्तार में समझाऊंगी तो ये लेख एक किताब बन जाएगा,उम्मीद करती हूँ मेरी बातो को सभी मनुष्य समझ जाए तथा अपने नकारात्मक बुरे विचारो से जल्द ही मुक्ति पाए एवं अपने मन के शुद्धिकरण की निति को अपनाए। 



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