क्यों शर्मशार हो रहे वैवाहिक रिश्ते ?

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1. एक ऐसा विष जो जीवन को बर्बाद कर देता है। 


स्वार्थ एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति के ना ही दिमाग को बल्कि उसके तमाम जीवन को बर्बाद कर देता है। स्वार्थ जिस रिश्ते में समा जाता है वो रिश्ता टूट कर बिखर जाता है। आज समस्त संसार जिस विष के घेरे में फसा हुआ है, वो विष है स्वार्थ। स्वार्थ को अपने जीवन से आज ही निकाल दो इससे पहले कि ये स्वार्थ तुम्हारे पूरे जीवन में विष भरे उससे पहले इस स्वार्थ को अपने दिमाग से आजाद कर दो, यदि तुम्हें अपनी खुशियां प्यारी है तो अपने वैवाहिक रिश्ते को बर्बाद होने से पहले ही बचा लो क्योकि जोड़ियां बस एक बार बनती है, जो रिश्ते तुम यहां दोबारा जबरदस्ती बनाने की भूल कर रहे हो वो तुम्हें कभी बेहतर और सही परिणाम नहीं दे सकता। 


ना जाने क्या हासिल होगा तुम्हें कागज के चंद टुकड़ो से जो तुम अपने अटूट पवित्र रिश्ते को अपने स्वार्थ की भेट चढ़ाने पर तुले हो। आज कल की स्त्री भी अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही विवाह जैसे पवित्र बंधन को भी कलंकित कर रही है। एक सुखी संपन्न परिवार कैसे एक पल में बर्बाद हो जाता है, उनसे उनकी तमाम खुशियां एक पल में छीन जाती है। 


विवाह के पश्चात लोग यही सोचते है कि हमारा परिवार पूरा हुआ, हमारे सपने पूरे हुए, क्योकि एक जीवनसाथी ही अपने जीवनसाथी को बेहतर समझ सकता है, हर दुःख, हर दर्द को दूर कर सकता है।मगर जीवनसाथी ही अगर जीवन की बर्बादी का कारण बन जाए तो क्या गुजरेगा उस इंसान के दिल पर जिसने ना जाने कितने सुंदर सपने संजोए रखे थे अपने जीवनसाथी के लिए ?


मैं आप सब से क्षमा चाहती हूँ मगर आज मुझे अपने लेख में ऐसा कहना पड़ रहा है जो आज के हालात को देख कर मुझे ऐसा कहने पर विवश कर रहा है मगर सत्य से कौन अवगत नहीं, हमारे युवा तो सत्य से अवगत है। तो मैं कह देती हूँ आप ध्यान से सुनना केवल शरीर से रिश्ता जोड़ना, केवल तन से मतलब रखना और अपनी इच्छापूर्ति के लिए किसी के जज़्बात के साथ खेलना क्या किसी को शोभा देता है ?


2. क्यों शर्मशार हो रहे वैवाहिक रिश्ते ?


 पति पत्नी के रिश्ते में केवल तन का मिलन नहीं बल्कि आत्मा और मन का भी मिलन होना आवश्यक होता है। एकमात्र अपने स्वार्थ और हवस को मिटाने के लिए आज के कुछ युवा सच्चे प्यार को और विवाह को कलंकित करने का पाप कर रहे है। जिसमे गलती केवल पुरुष की ही नहीं बल्कि स्त्री की भी है, आज की नारियां अपनी गरिमा को भुला चुकी है, अपनी मर्यादा को लांघ चुकी है, जो पति को बस एक इच्छापूर्ति का साधन समझती है, बस पैसे को सब कुछ समझती है, जिस कारण यहां लोग अब विवाह और प्रेम के रिश्ते को भी अब मजाक में लेने लगे है। किसी की जिंदगी से बढ़ कर पैसा नहीं हो सकता, किसी की खुशियों से बढ़ कर पैसा नहीं हो सकता, किसी के प्यार से बढ़ कर पैसा नहीं हो सकता। 


3. विवाह और दांपत्य रिश्ते का सही मतलब


विवाह कोई खेल नहीं है आज किसी के साथ तो कल किसी और के साथ। क्योकि तन के मिलन से जरूरी होता है मन का मिलन, जो दो शरीर और एक आत्मा का मिलन होता है, जिसमे स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता है, क्योकि ऐसा पवित्र रिश्ता निस्वार्थ होता है, यही तो विवाह और दाम्पत्य रिश्ते का मतलब होता है। 




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