किसी भी समस्या को यदि तुम दूर करने में सक्षम हो तो उस समस्या के बारे में सोचना गलत नहीं क्योकि बिना सोचे तुम्हे उसका कोई विकल्प या हल नहीं मिल सकता मगर जब उस समस्या का समाधान तुम्हारे पास मौजूद नहीं फिर उस समस्या को यदि तुम अपने दिमाग पर अत्यधिक हावी करने का प्रयास करोगे तो तुम्हारी चिंताए बढ़ती जाएगी जिसका असर एकमात्र तुम्हारी जिंदगी पर ही नहीं बल्कि तुम्हारे स्वास्थ और दिमाग पर भी पड़ेगा।
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1. क्यों है चिंता एक विकट समस्या ?
मान लो कई दिनों से किसी मेज पर अत्यधिक लकड़ियों का बोझ रखा जाए और फिर से उस मेज पर और लकड़ियों को रख दिया जाए तो लकड़ियों के बोझ के दवाब से वो मेज कमजोर होता चला जाएगा और एक दिन वो लकड़ियों सहित वो मेज टूट कर बिखर जाएगा।
क्यों ऐसी कहावत कही गई हैं कि चिंता चिता के समान हैं, ऐसा इसलिए कहा गया हैं क्योकि चिंता मनुष्य के चित्त को हर लेती हैं,अत्यधिक चिंतन से मनुष्य का दिमाग एक रोगी के समान रोगग्रसित होने लगता हैं,जिससे सोचने समझने की शक्ति छिन्न हो जाती हैं क्या अच्छा हैं और क्या बुरा मनुष्य ये समझ नहीं पाता। यहां तक कि चिंता में मनुष्य को खुशी का भी आभास नहीं होता ना तो वो अपना देखभाल उचित प्रकार कर पाता हैं और ना ही अपने परिवार का। जिस मनुष्य के दिमाग में चिंता का समावेश होने लगता हैं वो मनुष्य स्वयं को सबसे दूर कर लेता हैं,ना तो उसे किसी की बात अच्छी लगती हैं और ना ही किसी का साथ उसे पसंद आता हैं। जिसमे सोचने समझने की ही शक्ति नष्ट हो जाए जिसे खुद की भी खबर नहीं वो मनुष्य एकमात्र जिंदा लाश नहीं तो और क्या हो सकता हैं भला ?
चिंता से चतुराई घटे,दुःख से घटे शरीर,लोभ किए धन घटे, इस दोहे से संसार को जो सीख दी जा रही हैं यदि हर मनुष्य इसे समझ जाए तो वो कभी स्वयं पर चिंता और दुःख को हावी नहीं होने देगा।
2. चिंता का मानव जीवन पर दुष्प्रभाव -
चिंता में मनुष्य अपने स्वास्थ को भी नुकसान पहुंचाने का कार्य करता हैं। मानव जीवन में अनेको समस्याएं आते-जाते रहती हैं इसका मतलब ये नहीं कि मानव समस्याओ में खुद को इतना उलझा ले कि खुद की भी सुध बुध ना रहे। जब तुम कुछ कर नहीं सकते हो तो फिर सोच कर या चिंतन कर तुम क्या हासिल कर लोगे ? तुम्हे जरा भी अनुमान नहीं कि तुम चिंता में डूब कर स्वयं को ही हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे हो।
जिसका सीधा असर तुम्हारे स्वास्थ पर पड़ेगा,जब तुम ही स्वस्थ नहीं रहोगे तो तुम्हे अपनी समस्याओ से और चिंताओं से मुक्त कौन करेगा ? समझदारी इसी में हैं कि तुम अपने विवेक से काम लो। स्वयं को चिंताओं से मुक्त करो तभी तुम्हारा विवेक जाग सकता हैं, जो तुम्हे सही राह दिखा सकता हैं, यदि तुम दिन-रात व्याकुल और शोकाकुल रहोगे तो तुम्हे और तुम्हारे जीवन को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता। चिंता में डूबने से तुम्हे अपने सही मार्ग का पता कैसे चल सकता हैं ?
क्योकि एक अशांत मन,जिसमे अनेको शोर हो रहे हैं,जो तुम्हारे मस्तिष्क को क्षति पंहुचा रहे हैं जिस मस्तिष्क से ही तुम्हे उचित अनुचित का ज्ञान होता हैं जब वो मस्तिष्क ही क्षतिग्रस्त हो जाए तो तुम्हे कोई मार्ग कैसे दिख सकता हैं भला ? करियर में भी यदि सफलता हासिल होती हैं, तो बस मनुष्य के परिश्रम से तथा अपने ज्ञान की मदद से ही मनुष्य कोई भी बड़ी सफलता या मकाम हासिल करता हैं। मगर तनाव और चिंताओं ने तो तुम्हारा दिमाग जकड़ लिया हैं फिर तुम्हे अच्छे बुरे की पहचान कैसे हो सकता हैं ?
चेहरे की चमक,सुंदरता सब कुछ तभी अच्छा लगता हैं जब तुम्हारे दिमाग में कोई दुःख या चिंता का वास नहीं तुमने कभी गौर किया हैं, जो सदैव प्रसन्न रहते हैं दुखो को भुला कर भी खुश रहने का प्रयास करते हैं, उनके चेहरे की चमक और सुंदरता स्वतः ही बढ़ने लगती हैं,बढ़ती उम्र का भी उन पर प्रभाव नहीं होता उम्र अधिक होने के बाद भी वो जवा दीखते हैं,मगर जो सदैव चिंता या दुःख में हर पल डूबे रहते हैं,कम उम्र में ही वो उम्रदराज लगने लगते हैं उनके चेहरे की चमक और सुंदरता गायब होने लगती हैं।
चिंता में रहने से मनुष्य का स्वाभाव भी बदलने लगता हैं, उसके स्वाभाव में भी कई बदलाव आने लगते हैं, जैसे कि उनका मिजाज बेरुखी, क्रोध और चिड़चिड़ा होने लगता हैं। अच्छी बात भी उन्हें बुरी लगने लगती हैं मित्र हो या परिवार उन्हें किसी की कोई भी बात पसंद नहीं आती हैं।
ना समय से भोजन करना ना ही समय से सोना इस तरह चिंता में रहने वाले मनुष्य स्वयं को एक रोगी बना लेते हैं, जिसका इलाज किसी चिकित्सक के पास नहीं क्योकि इस बीमारी को तुमने स्वयं जन्म दिया हैं,जिसका इलाज एकमात्र तुम कर सकते हो कोई और नहीं।